SRI RAJARAJESHWARI CHURNIKA

श्री राजराजेश्वरी चूर्णिका
श्रीमत् कमलापुर कनकधराधरवर निरुपम परम पावन मनोहर प्रान्ते, सरसिजभवोपम विश्वंभरामरवर्ग निर्गलत्संभ्रम पुंखानुपुंख निरन्तर पठ्यमान निखिल निगमागम शास्त्रपुराणेतिहास कथानिर्मल निनादसमाक्रान्ते    [१]
तत्र प्रवर्द्धित मन्दार-मालूर-कर्णिकार-सिन्धुवार-खर्जुर-कोविदार-जंबीर-जंबू-निंब-कदंबोदुंबर-साल-रसाल-तमाल-तक्कोल-हिन्ताल-नारिकेल-कदली-क्रमुक-मातुलंग-नारंग-लवंग-बदरी-चंपकाशोक-मधूक-पुन्नागागरुचन्दन-नागकुरुवक-मरुवक-एला-द्राक्षा-मल्लिका-मालती-माधवीलता-शोभायमान-पुष्पित-फलित-ललित विविधवनतरुवाटिका मद्ध्यप्रदेशे    [२]
शुक-पिक-शारिका निकर-चकोर-मयूरचक्रवाक-बलाक-भरद्वाज-पिंगल-टिट्टिभ-गरुड-विहंग-कलायन कोलाहलाराव परिपूरिताशे तत्र सुधारसोपमपानीय
परिपूर्णकासार तटाकस्फुटितारविन्द पुण्डरीक कुमुदेन्दीवर-षण्ड सन्ञ्चरन्मराल चक्रवाक कारण्डक प्रमुख जलजाण्डजमण्डली शोभायमाने, नन्दनवनकृतबहुमाने   [३]   
चारुचामीकर रत्नगोपुर प्राकारवलयिते, सुललिते, सुस्निग्धविराजित वज्रस्तंभ सहस्र- पद्मरागोपलफलक जात नूतननिर्मित-प्रथममण्डप-द्वितीयमण्डप –अन्तरालमण्डप मूलमहामण्डपस्थाने, शिल्पिशास्त्रप्रधाने, खचित वज्र-वैडूर्य-माणिक्य-गोमेदक-पद्मराग-मरकत-नील-मुक्ता-प्रवालाख्य नवरत्न तेजोविराजित बिन्दु-त्रिकोण-षट्कोण-वसुकोण
दशारयुग्म मन्वन्तराष्टदल षोडशदल चतुर्द्वारयुत भूपुरत्रय श्रीचक्रस्वरूप भद्रसिंहासनासीने, सकलदेवताप्रधाने !            [४]
चरणांगुलिनखमुखरुचिनिचयपराभूततारके, श्रीमन्माणिक्य मञ्जीर रञ्जित श्रीपदांबुजद्वये,अद्वये,  मीनकेतनमणितूणीरविलासविजयिजंघायुगले, कनकरंभास्तंभजृंभितोरुद्वये, कन्दर्प-स्वर्णस्यन्दनपटुतर शकटसन्निभ  नितंबबिंबे कुचभारनम्रदृष्टावलग्न विभूषित कमनीय काञ्चीकलापे [५] 
दिनकरोदयावसर –अर्धविकसितारविन्द-कुड्मलतुल्यनाभिप्रदेशे, रोमराजीविराजित-वलित्रयी भासुरकरभोदरे, जंभासुररिपु कुंभिकुंभ-
समुज्जृंभित शातकुंभायमान संभावित पयोधरद्वये,
गोप्लूत कुचकलशकक्षद्वयारुणारुणित सूर्यपुटाभिधान परिधान निर्मित मुक्तामणिप्रोत कञ्चुकविराजमाने, कोमलतर कल्पवल्लीसमानपाशांकुश वराभय मुद्रामुद्रित कङ्कण झणझणत्कार विराजित
चतुर्भुजे !    [६]
त्रैलोक्यजैत्रयात्रागमन-समनन्तर- संगत- सुरवर-
कनकगिरीश्वर- करबद्ध- मंगलसूत्र-त्रिरेखाशोभित
कन्धरे, नवप्रवाल-पल्लव-पक्वबिंबफलाधरे,
निरन्तरकर्पूरतांबूलचर्वणारुणित रदनपंक्तिद्वये,
चंपकप्रसूनतिलपुष्पसमान नासापुटाग्रोदन्ञ्चित-
मौक्तिकाभरणे, कर्णावतंसीकृतेन्दीवर-विराजित-
कपोलभागे, अरविन्ददलसदृशदीर्घलोचने  [७]
कुसुमशर-कोदण्डलेखालंकारकारि मनोहारि भ्रूलतायुगले, बालप्रभाकर- शशिकरपद्मरागमणिनिकराकार- सुरुचिर- रुचिमण्डल कर्णकुण्डलमण्डित गण्डभागे, सुललिताष्टमी चन्द्रलावण्य ललाट फलके, कस्तूरिकातिलके,
हरिनीलमणि द्विरेफावलि प्रकाशकेशपाशे,
कनकांगद-हारकेयूर-नानाविधायुध-भूषाविशेषाद्ययुत-
स्थिरीभूतसौदामिनी तुलित ललित नूतन
तनूलते ! [८]
काश्यपात्रि भरद्वाज-व्यास-पराशर-मार्कण्डेय-
विश्वामित्र-कण्व-कपिल-गौतम-गर्ग-पुलस्त्यागस्त्यादि
सकल मुनिध्येय-ब्रह्मतेजोमये, चिन्मये!        [९]
सेवार्थागत अंग-वंग-कलिंग-कांभोज-काश्मीर-
कारूप-सौवीर-सौराष्ट्र-महाराष्ट्र-मागध-विराट-
गुर्ज्जर-मालव-निषध-चोल-चेर-पाण्ड्य-पाञ्चाल-
गौड-बृंहल-द्रवड-द्राविड-घोट-लाट-मराट-वराट-
कर्णाटक-आन्ध्र-हूण-भोज-कुरु-गान्धार-
विदेह-विदर्भ-विजृंभ-बाह्लीक-बर्बर-केरल-
केकय-कोसल-शूरसेन-च्यवन-टंकण-कोंकण-
मत्स्य-माध्व-सैन्धव-बल्हूक-भूचक्रयुग-
गान्धार-काशी-भद्राशी-ऐन्द्रगिरि-नागपुरी-
घंटानगरी-उत्तरगिरि- आख्य षट्पञ्चाशत्
देशाधीशादि गन्धर्वहेषारव सिन्धुसिन्धूर-
हीत्काररव रथांग क्रैंकारभेरी झंकार-
मद्दलध्वनि हुंकारयुक्त चतुरंगसमेत-
जित-राजसुर-रजाधिराज पुंखानुपुंख गमनागमनविशीर्णाभरणाद्ययुत
समुत्पन्नपरागपाटली वालुकायमान
प्रथम मण्डप सन्निधाने !          [१०]
तत्तत् पूजाकालक्रियमाण- पाद्य-
अर्घ्य-आचमनीय-स्नान-वस्त्र-आभरण-
गन्ध-पुष्प-अक्षत-धूप-दीप-नैवेद्य-
तांबूल-मंत्रपुष्प-स्वर्णपुष्प-प्रदक्षिण-
नमस्कार-स्तोत्रपारायण-सन्तोषित-
सन्तत-वरप्रदानशीले, सुशीले !     [११]
रंभोर्वशी-मेनका-तिलोत्तमा-हारिणी-घृताची-
मञ्जुघोषा, अलंबुसाद्ययुताप्सरस्त्री धिमिन्धिमित
चित्रोपचित्रनर्तनोल्लासावलोकनप्रिये, कृत्तिवासप्रिये,
भण्डासुर प्रेषिताखण्डबलदोर्द्दण्डरक्षोमण्डली खण्डने,
निजकरांगुलीयकात् मत्स्य- कूर्म-वराह-नृसिंह-वामन-
परशुराम-श्रीराम-बलराम-श्रीकृष्ण-कल्क्याख्य-नारायण
दशावतार हेतुभूते, हिमवत्कुलाचल राजकन्ये,
सर्वलोकमान्ये, कोटिकन्दर्पलावण्य तारुण्य कनकगिरीश्वर त्यागराजवामपार्श्वद्वये, त्रिभुवनेश्वरि
सर्वप्रदायिनि!                       [१२]   
 श्रीविद्याधीशरचित चूर्णिका श्रवण-पठनानन्दिनां 
संप्रार्थित-आयुरारोग्य-सौन्दर्य-विद्या-बुद्धि-पुत्र-पौत्र-
कलत्रैश्वर्यादि सकल सौख्य प्रदे
त्रिभुवनेश्वरि ! श्रीमत् कमलांबिके पराशक्ते!
मातः ! नमस्ते! नमस्ते! नमस्तॆ!
पाहि मां! पाहि मां!  पाहि मां!
मुक्ताविद्रुमहेमकुण्डलधरा सिंहाधिरूढा शिवा
रक्तांभोजसमानकान्तिवदना श्रीमत्किरीटान्विता।
मुक्ताहेमविचित्रहारकटकैः पीतांबरा शंकरी
भक्ताभीष्टवरप्रदानचतुरा मां पातु हेमांबिका ॥     


Sri P R Ramamurthy Ji was the author of this website. When he started this website in 2009, he was in his eighties. He was able to publish such a great number of posts in limited time of 4 years. We appreciate his enthusiasm for Sanskrit Literature. Authors story in his own words : http://ramamurthypr1931.blogspot.com/

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