SRI SARADADEVYASHTAKAM

श्रीसारदादेव्यष्टकम्
देवि प्रसन्नवदने करुणावतारे
   दिव्योज्ज्वलद्युतिमयि त्रिजगज्जनित्रि।
कल्याणकारिणि वराभयदानशीले
   मातर्विराज सततं मम हृत्सरोजे ॥१॥
ब्रह्मस्वरूपिणि शिवे शुभदे
शरण्ये
    चैतन्यदायिनि भवाम्बुधिपारनेत्रि।
शान्तिप्रदे सुविमले सकलार्तिनाशे
    मातर्विराज सततं मम हृत्सरोजे ॥२॥
वेदान्तवेद्यपरतत्त्वसुमूर्तरूपा
  आद्यन्तमध्यरहिता श्रुतिसारभूता।
एकाऽद्वया हि परमा प्रकृतिस्त्वमाद्या
  मातर्विराज सततं मम हृत्सरोजे ॥३॥
मायामनुष्यतनुधारिणि विश्ववन्द्ये
   लीलाविलासकरि चिन्मयदिव्यरूपे।
सृष्टिस्थितिप्रलयकारिणि विश्वशक्ते
   मातर्विराज सततं मम हृत्सरोजे ॥४॥
वैराग्यभक्तिवरदा भवतारिणि त्वं
    माङ्गल्यशान्तिनिलया ह्यमृतस्वरूपा।
विद्या परा त्रिजगदुद्धरणैकसेतु-
    र्मातर्विराज सततं मम हृत्सरोजे ॥५॥
  विश्वात्मिके परमपावनसौम्यरूपे
     मोहान्धकारपरिहारिणि मोक्षदात्रि।
   सर्वाश्रये भयहरे
जगदेकगम्ये
      मातर्विराज सततं मम हृत्सरोजे ॥६॥
 श्रीरामकृष्णमयजीवित ईश्वरी त्वं
    तद्भावविग्रहमयी तदभिन्नसत्ता।
श्रीरामकृष्णमयपावकदीप्तिशक्ते
    मातर्विराज सततं मम हृत्सरोजे ॥७॥
सच्चित्सुखानुभवदायिनि बोधरूपे
   विश्वेश्वरि प्रणतपालिनि सिद्धिदात्रि।
श्रीसारदे भुवनमङ्गलदिव्यमूर्ते
   मातर्विराज सततं मम हृत्सरोजे ॥८॥

Sri P R Ramamurthy Ji was the author of this website. When he started this website in 2009, he was in his eighties. He was able to publish such a great number of posts in limited time of 4 years. We appreciate his enthusiasm for Sanskrit Literature. Authors story in his own words : http://ramamurthypr1931.blogspot.com/

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