HYMNS TO SHIVA – UMAMAHESHWARA STOTRAM

 उमामहेश्वरस्तोत्रम्
     (श्री शंकराचार्यकृतम्)
नमः शिवाभ्यां नवयौवनाभ्यां
परस्पराश्लिष्टवपुर्धराभ्याम् ।
नगेन्द्रकन्यावृषकेतनाभ्यां
नमोनमः शंकरपार्वतीभ्याम् ॥ १ ॥
नमः शिवाभ्यां सरसोत्सवाभ्यां
नमस्कृताभीष्टवरप्रदाभ्याम् ।
नारायणेनार्चितपादुकाभ्यां
नमोनमः शंकरपार्वतीभ्याम् ॥ २ ॥
नमः शिवाभ्यां वृषवाहनाभ्यां
विरिञ्चिविष्ण्विन्द्रसुपूजिताभ्याम् ।
विभूतिपाटीरविलेपनाभ्यां
नमोनमः शंकरपार्वतीभ्याम् ॥ ३ ॥
नमः शिवाभ्यां जगदीश्वराभ्यां
जगत्पतिभ्यां जयविग्रहाभ्याम् ।
जंभारिमुख्यैरभिवन्दिताभ्यां
नमोनमः शंकरपार्वतीभ्याम् ॥ ४ ॥
नमः शिवाभ्यां परमौषधाभ्यां
पन्ञ्चाक्षरीपञ्जररञ्जिताभ्याम् ।
प्रपञ्चसृष्टिस्थितिसंहृताभ्यां
नमोनमः शंकरपार्वतीभ्याम् ॥ ५ ॥
नमः शिवाभ्यामतिसुन्दराभ्यां
अत्यन्तमासक्तहृदंबुजाभ्याम् ।
अशेषलोकैकहितंकराभ्यां
नमोनमः शंकरपार्वतीभ्याम् ॥ ६ ॥
नमः शिवाभ्यां कलिनाशनाभ्यां
कङ्कालकल्याणवपुर्धराभ्याम् ।
कैलासशैलस्थित देवताभ्यां
नमोनमः शंकरपार्वतीभ्याम् ॥ ७ ॥
नमः शिवाभ्यामशुभापहाभ्यां
अशेषलोकैकविशेषिताभ्याम् ।
अकुण्ठिताभ्यां स्मृतिसंभृताभ्यां
नमोनमः शंकरपार्वतीभ्याम् ॥ ८ ॥
नमः शिवाभ्यां रथवाहनाभ्यां
रवीन्दुवैश्वानरलोचनाभ्याम् ।
राकाशशाङ्काभमुखांबुजाभ्यां
नमोनमः शंकरपार्वतीभ्याम् ॥ ९ ॥
नमः शिवाभ्यां जटिलं धराभ्यां
जरामृतिभ्यां च विवर्जिताभ्याम् ।
जनार्दनाब्जोद्भवपूजिताभ्यां
नमोनमः शंकरपार्वतीभ्याम् ॥ १० ॥
नमः शिवाभ्यां विषमेक्षणाभ्यां
बिल्वच्छदामल्लिकदामभृद्भ्याम् ।
शोभावतीशान्तवतीश्वराभ्यां
नमोनमः शंकरपार्वतीभ्याम् ॥ ११ ॥
नमः शिवाभ्यां पशुपालकाभ्यां
जगत्त्रयीरक्षणबद्धहृद्भ्याम् ।
समस्तदेवासुरपूजिताभ्यां
नमोनमः शंकरपार्वतीभ्याम् ॥ १२ ॥
स्तोत्रं त्रिसंध्यं शिवपार्वतीभ्यां
भक्त्या पठेत् द्वादशकं नरो यः ।
स सर्व सौभाग्यफलानि भुङ्क्ते
शतायुरन्ते शिवस्लोकमेति ॥ १३ ॥

             

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HYMNS TO SHIVA – MARGABANDHU STOTRAM

श्री मार्गबन्धुस्तोत्रम्
         (श्री अप्पय्यदीक्षितकृतम्)
Refrain:
शम्भो महादेवदेव
शिवशम्भो महादेवदेवेश शम्भो
शम्भो महादेवदेव
फालावनम्रत्किरीटं
फालनेत्रार्चिषादग्धपञ्चेषुकीटम् ।
शूलाहतारातिकूटं शुद्धमर्धेन्दुचूडं भजे मार्गबन्धुम् ॥ १ ॥
शम्भो महादेवदेव ….
अङ्गेविराजत्भुजङ्गं
अभ्रगङ्गातरङ्गाभिरामोत्तमाङ्गम् ।
ओङ्कारवाटीकुरङ्गं
सिद्धसंसेविताङ्घ्रिं भजे मार्गबन्धुम् ॥ २ ॥
शम्भो महादेवदेव ….
नित्यंचिदानन्दरूपं
निह्नुताशेषलोकेशवैरिप्रतापम् ।
कार्तस्वरागेन्द्रचापं
कृत्तिवासं भजे दिव्यसन्मार्गबन्धुम् ॥ ३ ॥
शम्भो महादेवदेव …
कन्दर्पदर्पघ्नमीशं
कालकण्ठं महेशं महाव्योमकेशम् ।
कुन्दाभदन्तं सुरेशं कोटिसूर्यप्रकाशं भजे मार्गबन्धुम् ॥ ४ ॥
शंभो महादेवदेव …
मन्दारभूतेरुदारं मन्दरागेन्द्रसारं महागौर्यदूरम् ।
सिन्धूरदूरप्रचारं सिन्धुराजातिधीरं भजे मार्गबन्धुम् ॥ ५ ॥
शंभो महादेवदेव …..
अप्पय्य यज्वेन्द्रगीतं स्तोत्रराजं पठेद्यस्तु भक्त्या प्रयाणे ।
तस्यार्थ सिद्धिं विधत्ते मार्गमध्येऽभयं चाशुतोषो महेशः ॥ ६ ॥
शंभो महादेवदेव …..

            

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HYMNS TO SHIVA – CHARANASHRINGA RAHITA NATARAJA STOTRAM

चरणशृङ्गरहितनटराजस्तोत्रम्
        (श्री पतंजलिकृतम्)
सदञ्चितमुदञ्चित निकुञ्चितपदम् झलझलच्चलितमञ्जुकटकम्
पतञ्जलिदृगञ्जनमनञ्जनमचञ्चलपदम् जननभञ्जनकरम् ।
कदम्बरुचिमम्बरवसम् परममम्बुदकदम्बकविडम्बकगलम्
चिदम्बुधिमणिम् बुधहृदम्बुजरविम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥ १ ॥
हरम् त्रिपुरभञ्जनमनन्तकृतकङ्कणमखण्डदयमन्तरहितम्
विरिञ्चिसुरसम्हतिपुरन्दरविचिन्तितपदम् तरुणचन्द्रमकुटम् ।
परम्पदविखण्डितयमम् भसितमण्डिततनुम् मदनवञ्चनपरम्
चिरन्तनममुम् प्रणवसञ्चितनिधिम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥ २ ॥
अवन्तमखिलम् जगदभङ्गगुणतुङ्गममतम् धृतविधुम् सुरसरि-
त्तरङ्गनिकुरम्बधृतिलम्पटजटम् शमनडम्भसुहरम् भवहरम् ।
शिवम् दशदिगन्तरविजृम्भितकरम् करलसन्मृगशिशुम् पशुपतिम्
हरम् शशिधनञ्जयपतङ्गनयनम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥ ३ ॥
अनन्तनवरत्नविलसत् कटककिङ्किणी झलम् झलझलम् झलरवम्
मुकुन्दविधिहस्तगतमद्दललयध्वनि धिमिद्धिमित नर्तनपदम् ।
शकुन्तरथ बर्हिरथ नन्दिमुख भृङ्गिरिटि सङ्घनिकटम्
सनन्दसनकप्रमुखवन्दितपदम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥ ४ ॥
अनन्तमहसं त्रिदशवन्द्यचरणम् मुनिहृदन्तरवसन्तममलम्
कबन्धवियदिन्द्ववनिगन्धवहवह्निमखबन्धुरविमञ्जुवपुषम् ।
अनन्तविभवं त्रिजगदन्तरमणिम् त्रिणयनम् त्रिपुरखण्डनपरम्
सनन्दमुनिवन्दितपदम् सकरुणम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥ ५ ॥
अचिन्त्यमणिबृन्दरुचिबन्धुरगलम् कुरितकुन्दनिकुरुम्बधवलम्
मुकुन्दसुरबृन्दबलहन्तृकृतवन्दनलसन्तमहिकुण्डलधरम् ।
अकम्पमनुकम्पितरतिम् सुजनमङ्गलनिधिम् गजहरम् पशुपतिम्
धनञ्जयनुतम् प्रणतरञ्जनपरम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥ ६ ॥
परम् सुरवरम् पुरहरम् पशुपतिम् जनितदन्तिमुखषण्मुखममुम्
मृडम् कनकपिङ्गलजटम् सनकपङ्कजरविम् सुमनसम् हिमरुचिम् ।
असंगमनसम् जलधिजन्मगरलम्कबलयन्तमतुलम्  गुणनिधिम्
सनन्दवरदम् शमितमिन्दुवदनं प परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥ ७ ॥
अजं क्षितिरथम् भुजङ्गपुङ्गवगुणम् कनकशृङ्गिधनुषम्
करलसत्कुरङ्गपृथुटङ्कपरशुम् रुचिरकुङ्कुमरुचिम् डमरुकम् च दधतम् ।
मुकुन्दविशिखम् नमदवन्ध्यफलदम् निगमवृन्दतुरगम् निरुपमम्
सचण्डिकममुम् झटिति सम्हृतपुरम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥ ८ ॥
अनङ्गपरिपन्थिनमजं क्षितिधुरन्धरमलम्  करुणयन्तमखिलम्
ज्वलन्तमनलम् दधतमन्तकरिपुम् सततमिन्द्रसुरवन्दितपदम् ।
उदञ्चदरविन्दकुलबन्धुशतबिम्बरुचिसम्हति सुगन्धि वपुषम्
पतञ्जलिनुतम् प्रणवपञ्जरशुकम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥ ९ ॥
इति स्तवममुं भुजगपुङ्गवकृतम् प्रतिदिनम् पठति यः कृतमुखः
सदः प्रभु पदद्वितय दर्शनपदम् सुललितम् चरणशृङ्गरहितम् ।
सरः प्रभवसंभव हरित्पति हरिप्रमुख दिव्यनुत शङ्करपदम्
स गच्छति परम् न तु जनुर्जलनिधिम् परमदुःखजनकम् दुरितदम् ॥१०॥  

       
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HYMNS TO SHIVA – BILWASHTAKAM

बिल्वाष्टकम्
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुषं ।
त्रिजन्म पापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ १ ॥
त्रिशाखैः बिल्वपत्रैश्च ह्यच्छिद्रैः कोमलैः शुभैः ।
शिवपूजां करिष्यामि ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ २ ॥
अखण्डबिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे ।
शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यो ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ३ ॥
सालग्रामशिलामेकां विप्राणां जातु चार्पयेत् ।
सोमयज्ञमहापुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ४ ॥
दन्तिकोटिसहस्राणि वाजपेयशतानि च ।
कोटिकन्यामहादानं ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ५ ॥
लक्ष्म्यास्तनुत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियं ।
बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ६ ॥
दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनं ।
अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ७ ॥
काशीक्षेत्रनिवासं च कालभैरवदर्शनं ।
प्रयागेमाधवं दृष्ट्वा ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ८ ॥
तुलसीबिल्वनिर्गुण्डीजंबीरामलकानि च ।
पञ्चबिल्वमिति प्रोक्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ९ ॥

      

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HYMNS TO SHIVA – LINGASHTAKAM

लिङ्गाष्टकम्
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं
निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥ १ ॥
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं
कामदहंकरुणाकरलिङ्गम् ।
रावणदर्पविनाशकलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥ २ ॥
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं
बुद्धिविवर्द्धनकारणलिङ्गम् ।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥ ३ ॥
कनकमहामणिभूषितलिङ्गं
फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।
दक्षसुयज्ञविनाशकलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥ ४ ॥
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं
पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।
सञ्चितपापविनाशकलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥ ५ ॥
देवगणार्चितसेवितलिङ्गं
भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकरकोटिप्रभाकर लिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥ ६ ॥
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं
सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।
अष्टदरिद्रविनाशकलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥ ७ ॥
सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं
सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥ ८ ॥
  
लिङ्गाष्टकमिदंपुण्यम्
यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति
शिवेन सह मोदते ॥ ९ ॥

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HYMNS TO SHIVA – SHIVATHANDAVA STOTRAM

शिवताण्डवस्तोत्रम्
            (रावणकृतं)
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥ १ ॥
जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥ २ ॥
धराधरेन्द्रनन्दिनी विलासबन्धुबन्धुर-
स्फुरद्दिगन्तसन्तति प्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि
क्वचिद्दिगंबरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥ ३ ॥
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्‌फणामणिप्रभा-
कदंबकुङ्कुमद्रव प्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्‌त्वगुत्तरीय मेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥ ४ ॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणीविधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥ ५ ॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिंपनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरम्
महाकपालिसंपदे शिरो जटालमस्तु नः ॥ ६ ॥
करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनञ्जयाहुतीकृत प्रचण्ड पञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥ ७ ॥
नवीनमेघमण्डलीनिरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिंपनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः ॥ ८ ॥
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥ ९ ॥
अखर्व सर्वमङ्गला कलाकदंबमञ्जरी-
रसप्रवाहमाधुरी विजृंभणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥ १० ॥
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
द्विनिर्गमत्‌क्रमस्फुरत्‌करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिद्ध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः ॥ ११ ॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥ १२ ॥
कदानिलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन् ।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥ १३ ॥
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्‌ स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिम्
विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिन्तनम् ॥ १४ ॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतम्
यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्यस्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शंभुः ॥ १५ ॥

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HYMNS TO SHIVA – SHIVABHUJANGAM

         शिवभुजङ्गम्
        (श्री शंकराचार्यकृतं)
गलद्दानगण्डं मिलद्भृङ्गषण्डं
चलच्चारुशुण्डं जगत्त्राणशौण्डम् ।
कनद्दन्तकाण्डं  विपद्भङ्गचण्डं
शिवप्रेमपिण्डं भजे वक्रतुण्डम् ॥ १ ॥
अनाद्यन्तमाद्यं परं तत्वमर्थं
चिदाकारमेकं तुरीयं त्वमेयं ।
हरिब्रह्ममृग्यं परब्रह्मरूपं
मनोवागतीतं महःशैवमीडे ॥ २ ॥
स्वशक्त्यादिशक्त्यन्तसिंहासनस्थं
मनोहारिसर्वाङ्गरत्नोरुभूषं ।
जटाहीन्दुगंगास्थिशम्याकमौलिं
पराशक्तिमित्रं नुमः पञ्चवक्त्रम् ॥ ३ ॥
शिवेशानतत्पूरुषाघोरवामादिभिः
पञ्चभिर्हृन्मुखैः षड्भिरंगैः ।
अनौपम्यषड्त्रिंशतं तत्वविद्यामतीतं
परं त्वां कथं वेत्ति को वा महेश ॥ ४ ॥
प्रवालप्रवाहप्रभाशोणमर्धं
मरुत्वन्मणिश्रीमहःश्याममर्धम् ।
गुणस्यूतमेतद्वपुः शैवमन्तः
स्मरामि स्मरापत्तिसंपत्तिहेतोः ॥ ५ ॥
स्वसेवासमायात-देवासुरेन्द्रा-
नमन्मौलि-मन्दारमालाभिषक्तं ।
नमस्यामि शंभो पदांभोरुहं ते
भवांभोधिपोतं भवानीविभाव्यम् ॥ ६ ॥
जगन्नाथ मन्नाथ गौरीसनाथ
प्रपन्नानुकम्पिन्विपन्नार्तिहारिन् ।
महःस्तोममूर्ते समस्तैकबन्धो
नमस्ते नमस्ते पुनस्ते नमोस्तु ॥ ७ ॥
विरूपाक्ष विश्वेश विश्वादिदेव
त्रयीमूल शंभो शिव त्रयंबक त्वं ।
प्रसीद स्मर त्राहि पश्यावमुक्त्यै
क्षमां प्राप्नुहि त्र्यक्ष मां रक्ष मोदात् ॥ ८ ॥
महादेव देवेश देवादिदेव
स्मरारे पुरारे यमारे हरेति ।
ब्रुवाणः स्मरिष्यामि भक्त्या भवन्तं
ततो मे दयाशील देव प्रसीद ॥ ९ ॥
त्वदन्यः शरण्यः प्रपन्नस्य नेति
प्रसीद स्मरन्नेव हन्यास्तु दैन्यं ।
न चेत्ते भवद्भक्तवात्सल्यहानि-
स्ततो मे दयालो सदा सन्निधेहि ॥ १० ॥
अयं दानकालस्त्वहं दानपात्रं
भवानेव दाता त्वदन्यं न याचे ।
भवद्भक्तिमेव स्थिरां देहि मह्यं
कृपाशील शंभॊ कृतार्थॊऽस्मि तस्मात् ॥ ११ ॥
पशुं वेत्सि चेन्मां तमेवाधिरूढः
कलंकीति वा मूर्ध्नि धत्से तमेव ।
द्विजिह्वः पुनः सोऽपि ते कण्ठभूषा
त्वदङ्गीकृताः शर्व सर्वेऽपि धन्याः ॥ १२ ॥
न शक्नोमि कर्तुं परद्रोहलेशं
कथं प्रीयसे त्वं न जाने गिरीश ।
तथा हि प्रसन्नोऽसि कस्यापि कान्ता-
सुतद्रोहिणो वा पितृद्रोहिणो वा ॥ १३ ॥
स्तुतिं ध्यानमर्चां यथावद्विधातुं
भजन्नप्यजानन्महेशावलंबे ।
त्रसन्तं सुतं त्रातुमग्रे मृकण्डो-
र्यमप्राणनिर्वापणं त्वत्पदाब्जम् ॥ १४ ॥
शिरोदृष्टिहृद्रोगशूलप्रमेह-
ज्वरार्शोजरायक्ष्महिक्काविषार्तान् ।
त्वमाद्यो भिषग्भेषजं भस्म शंभो
त्वमुल्लाघयास्मान्वपुर्लाघवाय ॥ १५ ॥
दरिद्रोऽस्म्यभद्रोऽस्मि भग्नोऽस्मि दूये
विषण्णोऽस्मि सन्नोऽस्मि खिन्नोऽस्मि चाहं ।
भवान्प्राणिनामन्तरात्माऽसि शंभो 
ममाधिं न वेत्सि प्रभो रक्ष मां त्वं ॥ १६ ॥
त्वदक्ष्णोः कटाक्षः पतेत् त्र्यक्ष यत्र
क्षणं क्ष्मा च लक्ष्मीः स्वयं तं वृणाते ।
किरीटस्फुरच्चामरच्छत्रमाला
कलापीगजक्षौमभूषाविशेषैः ॥ १७ ॥
भवान्यै भवायापि मात्रे च पित्रे
मृडान्यै मृडायाप्यघघ्न्यै मखघ्ने ।
शिवाङ्ग्यै शिवाङ्गाय कुर्मः शिवायै
शिवायांबिकायै नमस्त्र्यंबकाय ॥ १८ ॥
भवद्गौरवं मल्लघुत्वं विदित्वा
प्रभो रक्ष कारुण्यदृष्ट्यानुगं माम् ।
शिवात्मानुभावस्तुतावक्षमोऽहं
स्वशक्त्या कृतं मेऽपराधं क्षमस्व ॥ १९ ॥
यदा कर्णरन्ध्रं व्रजेत्कालवाह-
द्विषत्कण्ठघण्टाघणत्कारनादः ।
वृषाधीशमारुह्य देवौपवाह्यं
तदा वत्स मा भीरिति प्रीणय त्वं ॥ २० ॥
यदा दारुणाभाषणा भीषणा मे
भविष्यन्त्युपान्ते कृतान्तस्य दूताः ।
तदा मन्मनस्त्वत्पदांभोरुहस्थं
कथं निश्चलं स्यान्नमस्तेऽस्तु शंभो ॥ २१ ॥
यदा दुर्निवारव्यथोऽहं शयानो
लुठन्निःश्वसन्निःसृताव्यक्तवाणिः ।
तदा जह्नुकन्याजलालंकृतं ते
जटामण्डलं मन्मनोमन्दिरं स्यात् ॥ २२ ॥
यदा पुत्रमित्रादयो मत्सकाशे
रुदन्त्यस्य हा कीदृशीयं दशेति ।
तदा देवदेवेश गौरीश शंभो
नमस्ते शिवायेत्यजस्रं ब्रवाणि ॥ २३ ॥
यदा पश्यतां मामसौ वेत्ति नास्मा-
नयं श्वास एवेति वाचो भवेयुः ।
तदा भूतिभूषं भुजङ्गावनद्धं
पुरारे भवन्तं स्फुटं भावयेयम् ॥ २४ ॥
यदा यातनादेहसंदेहवाही
भवेदात्मदेहे न मोहो महान् मे ।
तदाऽऽकाशशीतांशुसंकाशमीश
स्मरारे वपुस्ते नमस्ते स्मराणि ॥ २५ ॥
यदापारमच्छायमस्थानमद्भि-
र्जनैर्वा विहीनं गमिष्यामि मार्गं ।
तदा तं निरुन्धन् कृतान्तस्य मार्गं
महादेव मह्यं मनोज्ञं प्रयच्छ ॥ २६ ॥
यदा रौरवादि स्मरन्नेव भीत्या
व्रजाम्यत्र मोहं महादेव घोरं ।
तदा मामहो नाथ कस्तारयिष्य-
त्यनाथं पराधीनमर्धेन्दुमौले ॥ २७ ॥
यदा श्वेतपत्रायतालङ्घ्यशक्तेः
कृतान्ताद्भयं भक्तवात्सल्यभावात् ।
तदा पाहि मां पार्वतीवल्लभान्यं
न पश्यामि पातारमेतादृशं मे ॥ २८ ॥
इदानीमिदानीं मृतिर्मे भवित्री-
त्यहो संततं चिन्तया पीडितोऽस्मि ।
कथं नाम माभून्मृतौ भीतिरेषा
नमस्ते गतीनां गते नीलकण्ठ ॥ २९ ॥
अमर्यादमेवाहमाबालवृद्धं
हरन्तं कृतान्तं समीक्ष्यास्मि भीतः ।
मृतौ तावकाङ्घ्र्‌यब्ज-दिव्यप्रसादाद्-
भवानीपते निर्भयोऽहं भवानि ॥ ३० ॥
जराजन्मगर्भाधिवासादि दुःखा-
न्यसह्यानि जह्यां जगन्नाथ देव ।
भवन्तं विना मे गतिर्नैव शंभो
दयालो न जागर्ति किं वा दया ते ॥ ३१ ॥
शिवायेति शब्दो नमः पूर्व एष
स्मरन्मुक्तिकृन्मृत्युहा तत्ववाची ।
महेशान मा गान्मनस्तो वचस्तः
सदा मह्यमेतत् प्रदानं प्रयच्छ ॥ ३२ ॥
त्वमप्यंब मां पश्य शीतांशुमौलि-
प्रिये  भेषजं त्वं भवव्याधिशान्तौ ।
बहुक्लेशभाजं पदांभोजपोते
भवाब्धौ निमग्नं नयस्वाद्य पारं ॥ ३३ ॥
अनुद्यल्ललाटाक्षि-वह्निप्ररोहै-
रवामस्फुरच्चारु-वामोरुशोभैः ।
अनंगभ्रमद्भोगिभूषाविशेषै-
रचन्द्रार्धचूडैरलं दैवतैर्नः ॥ ३४ ॥
              
                                          
अकण्ठेकलङ्कादनङ्गे भुजङ्गा-
दपाणौ कपालादफालेनलाक्षात् ।
अमौलौशशाङ्कादवामेकलत्रा-
दहं देवमन्यं न मन्ये न मन्ये ॥ ३५ ॥
महादेव शंभो गिरीश त्रिशूलिं-
स्त्वयीदं समस्तं विभातीति यस्मात् ।
शिवादन्यथा दैवतं नाभिजाने
शिवोऽहं शिवोऽहं शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ ३६ ॥
यतोऽजायतेदं प्रपञ्चं विचित्रं
स्थितिं याति यस्मिन् यदेकान्तमन्ते ।
स कर्मादिहीनः स्वयंज्योतिरात्मा
शिवोऽहं शिवोऽहं शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ ३७ ॥
किरीटेनिशेशो ललाटे हुताशो
भुजे भोगिराजो गले कालिमा च ।
तनौ कामिनी यस्य तत्तुल्यदेवं
न जाने न जाने न जाने न जाने ॥ ३८ ॥
अनेन स्तवेनादरादंबिकेशं
परां भक्तिमासाद्य यं ये नमन्ति ।
मृतौ निर्भयास्ते जनास्तं भजन्ते
हृदंभोजमध्ये सदासीनमीशम् ॥ ३९ ॥
          
भुजङ्गप्रियाकल्प शंभो मयैवं
भुजङ्गप्रयातेन वृत्तेन क्लिप्तं ।
नरः स्तोत्रमेतत् पठित्वोरुभक्त्या
सुपुत्रायुरारोग्यमैश्वर्यमेति ॥ ४० ॥

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HYMNS TO SHIVA – ARDHANAREESHWARASHTAKAM

अर्द्धनारीश्वराष्टकम्
      (उपमन्युकृतं)
अंभोधरश्यामलकुन्तलायै
तटित्प्रभाताम्रजटाधराय ।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय
नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ १ ॥
प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै
स्फुरन्महापन्नगभूषणाय ।
शिवप्रियायै च शिवाप्रियाय
नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ २ ॥
मन्दारमालाकलितालकायै
कपालमालाङ्कितकन्धराय ।
दिव्यांबरायै च दिगंबराय
नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ३ ॥
कस्तूरिकाकुङ्कुमलेपनायै
श्मशानभस्मात्तविलेपनाय ।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय
नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ४ ॥
पादारविन्दार्पितहंसकायै
पादाब्जराजत्फणिनूपुराय ।
कलामयायै विकलामयाय
नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ५ ॥
प्रपञ्चसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै
समस्तसंहारकताण्डवाय ।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय
नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ६ ॥
प्रफुल्लनीलोत्पललोचनायै
विकासिपङ्केरुहलोचनाय ।
जगज्जनन्यै जगदेकपित्रे
नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ७ ॥
अन्तर्बहिश्चोर्ध्वमधस्च मध्ये
पुरश्च पश्चाच्च विदिक्षु दिक्षु ।
सर्वंगतायै सकलंगताय
नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ८ ॥
अर्द्धनारीश्वरस्तोत्रं उपमन्युकृतं त्विदम् ।
यः पठेच्छृणुयाद्वापि शिवलोके महीयते ॥ ९ ॥

      

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HYMNS TO SHIVA – SHIVASHTAKAM (VARUNA KRITAM)

 शिवाष्टकम्
      (वरुणकृतम्)
कल्याणशैलपरिकल्पितकार्मुकाय
मौर्वीकृताखिलमहोरगनायकाय ।
पृथ्वीरथाय कमलापतिसायकाय
हालास्यमध्यनिलयाय नमः शिवाय  ॥ १ ॥
भक्तार्तिभञ्जनपराय परात्पराय
कालाभ्रकान्तिगरलाङ्कितकन्धराय ।
भूतेश्वराय भुवनत्रयकारणाय
हालास्यमध्यनिलयाय नमः शिवाय ॥ २ ॥
भूदारमूर्तिपरिमृग्यपदांबुजाय
हंसाब्जसंभवसुदूरसुमस्तकाय ।
ज्योतिर्मयस्फुरितदिव्यवपुर्धराय
हालास्यमध्यनिलयाय नमः शिवाय ॥ ३ ॥
कादंबकानन निवास कुतूहलाय
कान्तार्धभाग कमनीयकलेबराय ।
कालान्तकाय करुणामृतसागराय
हालास्यमध्यनिलयाय नमः शिवाय ॥ ४ ॥
विश्वेश्वराय विबुधेश्वरपूजिताय
विद्याविशिष्ट विदितात्म सुवैभवाय ।
विद्याप्रदाय विमलेन्द्रविमानगाय
हालास्यमध्यनिलयाय नमः शिवाय ॥ ५ ॥
संपत्प्रदाय सकलागममस्तकेषु
संघोषितात्मविभवाय सदाशिवाय ।
सर्वात्मने सकलदुःखसमूलहन्त्रे
हालास्यमध्यनिलयाय नमः शिवाय ॥ ६ ॥
गङ्गाधराय गरुडध्वजवन्दिताय
गण्डस्फुरत्भुजगकुण्डलमण्डिताय ।
गन्धर्वकिन्नरसुगीत गुणात्मकाय
हालास्यमध्यनिलयाय नमः शिवाय ॥ ७ ॥
पाणिं प्रगृह्य मलयध्वजभूपपुत्र्याः
पाण्ड्येश्वरः स्वयमभूत् परमेश्वरो यः ।
तस्मै जगत् प्रथितसुन्दरपाण्ड्यनाम्ने
हालास्यमध्यनिलयाय नमः शिवाय ॥ ८ ॥
गीर्वाणदेशिकगिरामपि दूरगं यत्
वक्तुं महत्वमिह को भवतः प्रवीणः ।
शंभो क्षमस्व भगवच्चरणारविन्द-

भक्त्या कृतां स्तुतिमिमां मम सुन्दरेश ॥ ९ ॥

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HYMNS TO SHIVA – SADASHIVASHTAKAM

सदाशिवाष्टकम्
            (पतञ्जलिकृतम्)
सुवर्णपद्मिनीतटान्तदिव्यहर्म्यवासिने
सुपर्णवाहनप्रियाय सूर्यकोटितेजसे ।
अपर्णया विहारिणे फणाधरेन्द्रधारिणे
सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे ॥ १ ॥  
सतुङ्गभङ्गजह्नुजासुधांशुखण्डमौलये
पतङ्गपङ्कजासुहृत्कृपीटयोनिचक्षुषे ।
भुजङ्गराजमण्डनाय पुण्यशालिबन्धवे
सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे ॥ २ ॥
चतुर्मुखाननारविन्दवेदगीतभूतये
चतुर्भुजानुजाशरीरशोभमानमूर्तये ।
चतुर्विधार्थदानशौण्ड ताण्डवस्वरूपिणे
सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे ॥ ३ ॥
शरन्निशाकरप्रकाशमन्दहासमन्जुला-
धरप्रवालभासमानवक्त्रमण्डलश्रिये ।
करस्फुरत्कपालमुक्तविष्णुरक्तपायिने
सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे ॥ ४ ॥
सहस्रपुण्डरीकपूजनैकशून्यदर्शनात्
सहस्रनेत्रकल्पितार्चनाच्युताय भक्तितः ।
सहस्रभानुमण्डलप्रकाशचक्रदायिने
सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे ॥ ५ ॥
रसारथाय रम्यपत्रभृद्रथाङ्गपाणये
रसाधरेन्द्रचापशिञ्जिनीकृतानिलाशिने ।
स्वसारथीकृताब्जयोनिनुन्नवेदवाजिने
सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे ॥ ६ ॥
अतिप्रगल्भवीरभद्रसिंहनादगर्जित-
श्रुतिप्रभीतदक्षयागभागिनाकसद्मनाम् ।
गतिप्रदाय गर्जिताखिलप्रपञ्चसाक्षिणे
सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे  ॥ ७ ॥
मृकण्डुसूनुरक्षणावधूतदण्डपाणये
सुगण्डमण्डलस्फुरत्प्रभाजितामृतांशवे ।
अखण्डभोगसंपदर्थलोकभावितात्मने
सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे ॥ ८ ॥
मधुरिपुविधिशक्रमुख्यदेवै-
रपि नियमार्चितपादपङ्कजाय ।
कनकगिरिशरासनाय तुभ्यं
रजतसभापतये नमः शिवाय ॥ ९ ॥

 
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