HYMNS TO SUDARSHANA – SUDARSHANASHTAKAM

२०. श्री सुदर्शनाष्टकम्
      (श्री वॆङ्कटनायकप्रणीतम्)
प्रतिभटश्रॆणिभीषण वरगुणस्तॊम भूषण
जनिभय स्थानतारण जगदवस्थानकारण ।       
निखिलदुष्कर्मकर्शन निगमसद्धर्मदर्शन
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥ १ ॥
शुभजगद्रूपमण्डन सुरगणत्रासखण्डन
शतमख ब्रह्मवन्दित शतपथब्रह्मनन्दित ।
प्रथित विद्वत्-सपक्षित भवदहिर्बुध्न्यलक्षित
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥ २ ॥
स्फुटतटिज्जालपिञ्जर पृथुतरज्वालपञ्जर
परिगतप्रत्नविग्रह परिमितप्रज्ञदुर्ग्रह ।
प्रहरण ग्राममण्डित परिजनत्राण पण्डित
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥ ३ ॥
निजपदप्रॊत सद्गण निरुपधि स्फीत षड्गुण
निगमनिर्व्यूढवैभव निजपरव्यूहवैभव ।
हरिहयद्वॆषि दारण हरपुरप्लॊषकारण
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥ ४ ॥
दनुजविस्तार कर्तन जनितमिस्राविकर्तन
दनुजविद्या निकर्तन भजदविद्या निवर्तन ।
अमरहृष्टस्वविक्रम समरजुष्टभ्रमिक्रम
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥ ५ ॥
प्रतिमुखालीढबन्धुर पृथुमहाहॆतिदन्तुर
विकटमायाबहिष्कृत विविधमाला परिष्कृत ।
पृथुमहायन्त्र तन्त्रित दृढदयातन्त्रयन्त्रित
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥ ६ ॥
महित संपत्-सदक्षर विहित संपत्-षडक्षर
षडारचक्रप्रतिष्ठित सकलतत्वप्रतिष्ठित ।
विविधसङ्कल्पकल्पक विबुधसङ्कल्पकल्पक
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥ ७ ॥
भुवननॆतस्त्रयीमय सवन तॆजस्त्रयीमय
निरवधिस्वादुचिन्मय निखिलशक्तॆ जगन्मय ।
अमित विश्वक्रियामय शमित विष्वग्-भयामय
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥ ८ ॥
द्विचतुष्कमिदं प्रभूतसारं पठतां वॆङ्कटनायकप्रणीतम् ।
विषमॆऽपि मनॊरथः प्रधावन् न विहन्यॆत रथाङ्गधुर्यगुप्तः ॥ ९ ॥

Sri P R Ramamurthy Ji was the author of this website. When he started this website in 2009, he was in his eighties. He was able to publish such a great number of posts in limited time of 4 years. We appreciate his enthusiasm for Sanskrit Literature. Authors story in his own words : http://ramamurthypr1931.blogspot.com/

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