MEENAKSHI NAVARATNAMALA STOTRAM

        मीनाक्षीनवरत्नमालास्तोत्रम्
गौरीं
काञ्चनपद्मिनीतटगृहां श्रीसुन्दरेशप्रियां
   नीपारण्यसुवर्णकन्दुकपरिक्रीडाविलोलामुमाम्।
श्रीमद्पाण्ड्यकुलाचलाग्रविलसद्रत्नप्रदीपायितां
   मीनाक्षीं मधुरेश्वरीं शुकधरां श्रीपाण्ड्यबालां
भजे ॥१॥
गौरीं
वेदकदंबकाननशुकीं शास्त्राटवीकेकिनीं
      वेदान्ताखिलधर्महेमनलिनीहंसीं
शिवां शाम्भवीम्।
ओंकाराम्बुजनीलिमात्तमधुपां
मन्त्राम्रशाखापिकां
      मीनाक्षीं मधुरेश्वरीं शुकधरां श्रीपाण्ड्यबालां
भजे ॥२॥
गौरीं
नूपुरशोभिताङ्घ्रिकमलां तूणीरसज्जङ्घिकां
      
रत्नादर्शसमानजानुयुगलां
रम्भानिभोरुद्वयाम्।
 काञ्चीबद्धमनोज्ञपीनजघनामावर्तनाभिह्रदां
   मीनाक्षीं मधुरेश्वरीं शुकधरां श्रीपाण्ड्यबालां
भजे ॥३॥
गौरीं
व्योमसमानमध्यमयुतामुत्तुङ्गवक्षोरुहां
   वीणामञ्जुलनालिकान्वितकरां संगोल्लसत्सुन्दराम्।  
लाक्षाकर्दमशोभिपादयुगलां
सिन्दूरसीमन्तिनीम्
    मीनाक्षीं मधुरेश्वरीं शुकधरां
श्रीपाण्ड्यबालां भजे ॥४॥
गौरीं
मञ्जुलमीननेत्रयुगलां कोदण्डसुभ्रूलतां
   बिम्बोष्ठीं जितकुन्ददन्तरुचिरां
चाम्पेयनासोज्ज्वलाम्।
अर्धेन्दुप्रतिबिम्बफालरुचिरामादर्शगण्डस्थलां
    मीनाक्षीं मधुरेश्वरीं शुकधरां श्रीपाण्ड्यबालां भजे
॥५॥
गौरीं
कुङ्कुमपङ्कलेपितलसद्वक्षोजकुम्भोज्ज्वलां
   कस्तूरीतिलकालिकां मलयजालेपोल्लसत्कन्धराम्।
राकाचन्द्रसमानचारुवदनां
लोलम्बनीलालकां
   मीनाक्षीं मधुरेश्वरीं शुकधरां श्रीपाण्ड्यबालां भजे
॥६॥
गौरीं
काञ्चनकङ्कणांगदधरां नासालसन्मौक्तिकां
    मञ्जीराङ्गुलिमुद्रिकां
कटकग्रैवेयकालङ्कृताम्।
मुक्ताहारकिरीटरत्नविलसत्ताटङ्ककान्त्यायुतां
     मीनाक्षीं मधुरेश्वरीं शुकधरां
श्रीपाण्ड्यबालां भजे ॥७॥
  
गौरीं
चंपकमल्लिकासुकुसुमैः पुन्नागसौगन्धिकैः
   द्रोणेन्दीवरकुन्दजातिवकुलैराबद्धचूलीयुताम्।
मन्दारोत्पलकेतकीसुकुसुमश्रेणीलसद्वेणिकां
  मीनाक्षीं मधुरेश्वरीं शुकधरां श्रीपाण्ड्यबालां
भजे ॥८॥
गौरीं
दाडिमपुष्पवर्णविलसद्दिव्याम्बरालंकृतां
    चन्द्रांशूपमचारुचामरकरश्रीभारतीसेविताम्।
नानारत्नसुवर्णदण्डविलसन्मुक्तातपत्रोज्ज्वलाम्
    मीनाक्षीं मधुरेश्वरीं शुकधरां श्रीपाण्ड्यबालां भजे
॥९॥
वाचा
वा मनसापि वा गिरिसुते कायेन वा सन्ततं
      मीनाक्षीति कदाचिदम्ब कुरुते
त्वन्नामसङ्कीर्तनम्।
लक्ष्मीस्तस्यगृहे
वसत्यनुदिनं वाणी च वक्त्राम्बुजे
       धर्माद्यर्थचतुष्टयं करतलप्राप्तं
भवेन्निश्चयम्   ॥१०॥ 

AMBA STOTRAM

                                                            अम्बास्तोत्रम्
        (hymn to
the gramdevata of Ayre village in Dombivilli Bombay)
 अम्बिके!
प्रणमामि ’त्वामायरे’ ग्रामदेवते,।
 सर्वशक्ते, प्रसीद
त्वं सच्चिदानन्दरूपिणि ॥१॥
  ग्रामरक्षाबद्धदीक्षे,
ग्रामपुष्टिप्रदायिनी!।
  आपन्नवारिके देवि,
दयामयि, नमोऽस्तु ते॥२॥
  प्रसन्नकरुणापूर्णविलोलनयनाम्बुजाम्।
  आकुञ्चितमनोहारिस्फुरच्चिल्लीमतल्लिकाम्॥३॥
  सिन्दूरतिलकोद्भासिविशालनिटिलाञ्चिताम्।
  कपोलबिम्बितारम्यमणिकुण्डलभूषिताम्
॥४॥
  मन्दस्मितमनोहारि
मधुराधरशोभिताम्।
  आनीलपट्टवसनसमावृतकलेबराम्॥५।
  प्रशान्तदिव्यमहसा
परिवेषितविग्रहाम्।
  ध्यायामि त्वां
महादेवीं श्रीविद्याशक्तिरूपिणीम्॥६॥
  
   प्रसीद त्वं शिवे,
देवि, लक्ष्मि, दुर्गे, सरस्वति।
   रम्यं भवद्रूपमिदं
भासतां हृदये सदा ॥७॥
   विपदस्त्राहि नो
देवि! सम्पदो देहि नः शिवे।
   अस्मासु धेहि करुणां
भक्तान् नः पाहि सर्वदा ॥८॥
  
   ग्रामाम्बिकास्तोत्रमिदं
ये पठन्ति समाहिताः।
   शृण्वन्ति वा तथा
तेषु प्रसीदति महेश्वरी॥९॥
(Source: ‘Bhaktitarangini’
by Prof. P.C. Vasudevan Elayath, Published by Kerala Sanskrit Akademi)

SRI KALIKA STOTRAM

   श्रीकालिकास्तोत्रम्
ध्यानम्:
मेघाङ्गीं विगताम्बरां शवशिवारूढां त्रिनेत्रां परां
   कर्णालम्बिनृमुण्डयुग्मभयदां
मुण्डस्रजां भीषणाम्।
वामाधोर्ध्वकराम्बुजे नरशिरः खड्गं च सव्येतरे
    दानाभीति विमुक्तकेशनिचयां
वन्दे सदा कालिकाम् ॥
            श्रीकालिकास्तोत्रम्
त्वं परा प्रकृतिः साक्षात्ब्रह्मणः परमात्मनः
त्वत्तो जातं जगत्सर्वं त्वं जगज्जननी शिवे ॥१॥
महदाद्यणुपर्यन्तं यदेतत्सचराचरम्।
त्वयैवोत्पादितं भद्रे त्वदधीनमिदं जगत् ॥२॥
त्वमाद्या  सर्वविद्यानामस्माकमपि
जन्मभूः।
त्वं जानासि जगत्सर्वं न त्वां जानाति कश्चन ॥३॥
त्वं काली तारिणी दुर्गा षोडशी भुवनेश्वरी।
धूमावती त्वं बगला भैरवी छिन्नमस्तका ॥४॥
त्वमन्नपूर्णा वाग्देवी त्वं देवि कमलालया।
सर्वशक्तिस्वरूपा त्वं सर्वदेवमयी तनुः ॥५॥
त्वमेव सूक्ष्मा स्थूला त्वं व्यक्ताव्यक्तस्वरूपिणी।
निराकारापि साकारा कस्त्वां वेदितुमर्हति ॥६॥
उपासकानां कार्यार्थं श्रेयसे जगतामपि।
दानवानां विनाशाय धत्से नानाविधास्तनूः॥७॥
चतुर्भुजा त्वं द्विभुजा षड्भुजाष्टभुजा तथा।
त्वमेव विश्वरक्षार्थं नानाशस्त्रास्त्रधारिणी॥८॥
त्वं सर्वरूपिणी देवी सर्वेषां जननी परा।
तुष्टायां त्वयि देवेशि सर्वेषां तोषणं भवेत् ॥९॥
सृष्टेरादौ त्वमेकासीत्तमोरूपमगोचरम्।
त्वत्तो जातं जगत्सर्वं परब्रह्मसिसृक्षया॥१०॥
महत्तत्वादिभूतानां त्वया सृष्टमिदं जगत्।
निमित्तमात्रं तद्ब्रह्म सर्वकारणकारणम् ॥११॥
सद्रूपं सर्वतोव्यापि सर्वमावृत्य तिष्ठति।
सदैकरूपं चिन्मात्रं निर्लिप्तं सर्ववस्तुषु ॥१२॥
न करोति न चाश्नाति न गच्छति न तिष्ठति।
सत्यं ज्ञानमनाद्यन्तमवाङ्मनसगोचरम् ॥१३॥
तस्येच्छामात्रमालम्ब्य त्वं महायोगिनी परा।
करोषि पासि हंस्यन्ते जगदेतच्चराचरम्॥१४॥
तव रूपं महाकालो जगत्संहारकारकः।
महासंहारसमये कालः सर्वं ग्रसिष्यति॥१५॥
कलनात्सर्वभूतानां महाकालः प्रकीर्तितः।
महाकालस्य कलनात्त्वमाद्या कालिका परा ॥१६॥
कालसङ्ग्रसनात्काली सर्वेषामादिरूपिणी।
कालत्वादादिभूतत्वादाद्या कालीति गीयते ॥१७॥
पुनः स्वरूपमासाद्य तमोरूपं निराकृति।
वाचातीतं मनोऽगम्यं त्वमेकैवावशिष्यसे॥१८॥
साकारापि निराकारा मायया बहुरूपिणी।
त्वं सर्वादिरनादि त्वं कर्त्री हर्त्री च पालिका ॥१९॥
               —-

  

SRI CHANDI PRATAH SMARANA STOTRAM

              श्रीचण्डीप्रातःस्मरणस्तोत्रम्
प्रातः स्मरामि शरदिन्दुकरोज्ज्वलाभां
    सद्रत्नवन्मकरकूण्डलहारभूषाम्।
दिव्यायुधोर्जितसुनीलसहस्रहस्तां
     रक्तोत्पलाभचरणां भवतीं परेशाम् ॥१॥
प्रातर्नमामि महिषासुरचण्डमुण्ड-
   शुम्भासुरप्रमुखदैत्यविनाशदक्षाम्।
ब्रह्मेन्द्र रुद्र मुनिमोहनशीललीलां
   चण्डीं समस्त सुरमूर्तिमनेकरूपां ॥२॥
प्रातर्भजामि भजतामभिलाषदात्रीं
    धात्रीं समस्तजगतां
दुरितापहन्त्रीम्।
संसारबन्धनविमोचनहेतुभूतां
    मायां परां समधिगम्य
परस्य विष्णोः ॥३॥
श्लोकत्रयमिदं देव्याश्चण्डिकायाः पठेन्नरः।

सर्वान् कामानवाप्नोति विष्णुलोके महीयते॥४॥ 

ABHIRAMI STOTRAM

       अभिरामी स्तोत्रम्
नमस्ते ललिते देवि श्रीमत्सिंहासनेश्वरि।
भक्तानां इष्टदे मातः अभिरामि नमोऽस्तु ते ॥१॥
चन्द्रोदयं कृतवति ताटङ्केन महेश्वरि।
आयुर्देहि जगन्मातः अभिरामि नमोऽस्तु ते ॥२॥
सुधाघटेशश्रीकान्ते शरणागतवत्सले।
आरोग्यं देहि मे नित्यं अभिरामि नमोऽस्तु ते ॥३॥
कल्याणि मंगलं देहि जगन्मंगल्कारिणि।
ऐश्वर्यं देहि मे नित्यं अभिरामि नमोऽस्तु ते ॥४॥
चन्द्रमण्डलमध्यस्थे महात्रिपुरसुन्दरि।
श्रीचक्रराजनिलये अभिरामि नमोऽस्तु ते ॥५॥
राजीवलोचने पूर्णे पूर्णचन्द्रविधायिनि।
सौभाग्यं देहि मे नित्यं अभिरामि नमोऽस्तु ते ॥६॥
गणेशस्कन्दजननि वेदरूपे धनेश्वरि।
विद्यां च देहि मे कीर्तिं अभिरामि नमोऽस्तु ते ॥७॥
सुवासिनीप्रिये मातः सौमङ्गल्यविवर्धिनि।
माङ्गल्यं देहि मे नित्यं अभिरामि नमोऽस्तु ते ॥८॥
मार्कण्डेयमहाभक्त सुब्रह्मण्यसुपूजिते।
राजराजेश्वरी त्वं हि अभिरामि नमोऽस्तु ते ॥९॥
सान्निध्यं कुरु कल्याणि मम पूजागृहे शुभे।
बिम्बे दीपे तथा पुष्पे हरिद्राकुङ्कुमे मम॥१०॥
अभिराम्याः इदं स्तोत्रं यः पठेत् शक्तिसन्निधौ।
आयुर्बलं यशोवर्चो मङ्गलं च भवेत् सुखम् ॥११॥
[Sri Abhirami is the consort of Amritaghateshwara
(as aspect Lord Siva) at Tirukkadayur, Tamilnadu] 

DURGA ASHTOTTARA SATANAMAVALI-4

  दर्गा अष्टोत्तरशनामावलिः-4
Chant the names with
prefix ‘ओं’ and suffix ‘नमः’
दुर्गायै
शिवायै
महालक्ष्म्यै
महागौर्यै
चण्डिकायै
कालज्ञायै
सर्वलोकेश्यै
सर्वकर्मफलप्रदायै
सर्वतीर्थमय्यै
पुण्यायै                         १०
देवयोनये
अयोनिजायै
भूमिजायै
निर्गुणायै
आधारशक्त्यै
अनीश्वर्यै
आत्मरूपिण्यै
निरहंकारायै
सर्वगर्वविमर्दिन्यै
वाण्यै                     २०
सर्वविद्याधिदेवतायै
पार्वत्यै
देवमात्रे
वशीकायै
विन्ध्यवासिन्यै
तेजोवत्यै
महामात्रे
कोटिसूर्यसमप्रभायै
देवतायै
अग्निरूपायै                     ३०
सतेजसे
वर्णरूपिण्यै
गुणत्रयायै
गुणमध्यायै
गुणत्रयविवर्जितायै
कर्मज्ञानप्रदायै
कान्तायै
सर्वसंहारकारिण्यै
धर्मज्ञानायै
धर्मायै                         ४०
धर्मिष्ठायै
सर्वकर्मविवर्जितायै
कामाक्ष्यै
कामसंहर्त्र्यै
कामक्रोधविवर्जितायै
शाङ्कर्यै
शाम्भव्यै
शान्तायै
चन्द्रसूर्याग्निलोचनायै
अजपायै                   ५०
जयभूमिष्ठायै
जनहव्यै
जनपूजितायै
शास्त्रायै
शास्त्रमय्यै
नित्यायै
शुभायै
चन्द्रार्धमस्तकायै
भारत्यै                        
भ्रामर्यै                         ६०
कल्पायै
कराल्यै
कृष्णपिङ्गलायै
ब्राह्म्यै
नारायण्यै
रौद्रायै
चन्द्रामृतपरिस्रुतायै
ज्येष्ठायै
इन्दिरायै                  
देव्यै                           ७०
महामायायै
जगत्सृष्ट्यादिकारिण्यै
ब्रह्माण्डकोटिसंस्थानायै
कामिन्यै
कमलालयायै
कात्यायन्यै
कलातीतायै
कालसंहारकारिण्यै
योगनिष्ठायै
योगिगम्यायै                     ८०       

तपस्विन्यै
ज्ञानरूपायै
निराकारायै
भक्ताभीष्टफलप्रदायै
भूतात्मिकायै
भूतमात्रे
भूतेशायै
भूतधारिण्यै
स्वधारिमध्यगतायै
षडाधारादिवर्त्तिन्यै                 ९०
मोहदायै
अंशभवायै
शुभ्रायै
सूक्ष्मायै
मात्रायै
निरालसायै
निम्नगायै
नीलसंकाशायै
नित्यानन्दायै
हरायै                          १००
परायै
सर्वज्ञानप्रदायै
अनन्तायै
सत्यायै
स्थूलरूपिण्यै
सरस्वत्यै
सर्वगतायै
सर्वाभीष्टप्रदायै                    १०८ 

DURGA ASHTOTTARA SATANAMAVALI-3

      दर्गा
अष्टोत्तरशनामावलिः-3
Chant the names with
prefix ‘ओं’ and suffix ‘नमः’
श्रियै
उमायै
भारत्यै
भद्रायै
शर्वाण्यै
विजयायै
जयायै
वाण्यै
सर्वगतायै
गौर्यै                      १०
वाराह्यै
कमलप्रियायै
सरस्वत्यै
कमलायै
मायायै
मातङ्ग्यै
अपरायै
अजायै
शाकंभर्यै
शिवायै                         २०
चण्ड्यै
कुण्डल्यै
वैष्णव्यै
क्रियायै
श्रियै
ऐन्द्र्यै
मधुमत्यै
गिरिजायै
सुभगायै
अम्बिकायै                 ३०
तारायै
पद्मावत्यै
हंसायै
पद्मनाभसहोदर्यै
अपर्णायै
ललितायै
धात्र्यै
कुमार्यै
शिखिवाहिन्यै
शाम्भव्यै                  ४०
सुमुख्यै
मैत्र्यै
त्रिनेत्रायै
विश्वरूपिण्यै
आर्यायै
मृडान्यै
ह्रींकार्यै
क्रोधिन्यै
सुदिनायै
अचलायै                   ५०
सूक्ष्मायै
परात्परायै
शोभायै
सर्ववर्णायै
हरप्रियायै
महालक्ष्म्यै
महासिद्ध्यै
स्वधायै
स्वाहायै
मनोन्मन्यै                 ६०
त्रिलोकपालिन्यै
उद्भूतायै
त्रिसन्ध्यायै
त्रिपुरान्तकायै
त्रिशक्त्यै
त्रिपथायै
दुर्गायै
ब्राह्म्यै
त्रैलोक्यवासिन्यै
पुष्करायै                   ७०
अद्रिसुतायै
गूढायै
त्रिवर्णायै
त्रिस्वरायै
त्रिगुणायै
निर्गुणायै
सत्यायै
निर्विकल्पायै
निरञ्जनायै
ज्वालिन्यै                       ८०
मालिन्यै
चर्चायै
क्रव्यादोघनिबर्हिण्यै
कामाक्ष्यै
कामिन्यै
कान्तायै
कामदायै
कलहंसिन्यै
सलज्जायै
कुलजायै                   ९०
प्राज्ञ्यै
प्रभायै
मदनसुन्दर्यै
वागीश्वर्यै
विशालाक्ष्यै
सुमङ्गल्यै
काल्यै
महेश्वर्यै
चण्ड्यै
भैरव्यै                     १००
भुवनेश्वर्यै
नित्यायै
सानन्दविभवायै
सत्यज्ञानायै
तमोपहायै
महेश्वरप्रियंकर्यै
महात्रिपुरसुन्दर्यै
दुर्गापरमेश्वर्यै                     १०८

DURGA ASHTOTTARA SATANAMAVALI-2

         दुर्गा
अष्टोत्तरशनामावलिः-२
Chant the names with
prefix ‘ओं’ and suffix ‘नमः’

सत्यै
साध्व्यै
भवप्रीतायै
भवान्यै
भवमोचनन्यै
आर्यायै
दुर्गायै
जयायै
आद्यायै
त्रिनेत्रायै                   १०
शूलधारिण्यै
पिनाकधारिण्यै
चित्रायै
चण्डघण्टायै
महातपसे
मनसे
बुध्यै
अहंकारायै
चित्तरूपायै
चितायै                    २०
चित्यै
सर्वमन्त्रमय्यै
सत्यायै
सत्यानन्दस्वरूपिण्यै
अनन्तायै
भाविन्यै
भाव्यायै
भवायै
भव्यायै
सदागत्यै                        ३०
शाम्भव्यै
देवमात्रे
चिन्तारत्नप्रियायै
सर्वविद्यायै
दक्षकन्यायै
दक्षयज्ञविनाशिन्यै
अपर्णायै
अनेकवर्णायै
पाटलायै
पाटलावत्यै                   ४०
पट्टाम्बरपरीधानायै
कलमञ्जीररञ्जिन्यै
अमेयविक्रमायै
क्रूरायै
सुन्दर्यै
कुलसुन्दर्यै
वनदुर्गायै
मातङ्ग्यै
मतङ्गमुनिपूजितायै
ब्राह्म्यै                         ५०
महेश्वर्यै
ऐन्द्र्यै
कौमार्यै
वैष्णव्यै
चामुण्डायै
वाराह्यै
लक्ष्म्यै
परुषाकृत्यै
विमलायै
उत्कर्षिण्यै                       ६०
ज्ञानायै
क्रियायै
नित्यायै
बुद्धिदायै
बहुलायै
बहुलप्रेमायै
सर्ववाहनवाहनायै
शुंभनिशुंभहनन्यै
महिषासुरमर्दिन्यै
मधुकैटभहन्त्र्यै                   ७०
चण्डमुण्डविनाशिन्यै
सर्वासुरविनाशिन्यै
सर्वदानवखादिन्यै
सर्वशास्त्रमय्यै
सत्यायै
सर्वास्त्रधारिण्यै
अनेकशस्त्रहस्तायै
अनेकास्त्रधारिण्यै
कुमार्यै
एककन्यायै                      ८०
कैशोर्यै
युवत्यै
यत्यै
अप्रौढायै
प्रौढायै
वृद्धमात्रे
बलप्रदायै
महोदर्यै
मुक्तकेश्यै
घोररूपायै                       ९०
महाबलायै
अग्निज्वालायै
रौद्रमुख्यै
कालरात्र्यै
तपस्विन्यै
नारायण्यै
भद्रकाल्यै
विष्णुमायायै
जलोदर्यै
शिवदूत्यै                        १००
कराल्यै
अनन्तायै
परमेश्वर्यै
कात्यायन्यै
सावित्र्यै
प्रत्यक्षायै
ब्रह्मवादिन्यै
दुर्गायै                               १०८

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DURGASHTAKAM

                   दुर्गाष्टकम्
कात्यायनि महामाये खड्गबाणधनुर्धरे ।
खड्गधारिणि चण्डि श्री दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ॥१॥
वसुदेवसुते काळि वासुदेवसहोदरि।
वसुन्धरश्रिये नन्दे दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते॥२॥
योगनिद्रे महानिद्रे योगमाये महेश्वरि।
योगसिद्धिकरी शुद्धे दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ॥३॥
शंखचक्रगदापाणे  शार्ङ्गज्यायतबाहवे।
पीतांबरधरे धन्ये 
दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते॥४॥
ऋग्यजुस्सामाथर्वाणश्चतुस्सामन्तलोकिनि।
ब्रह्मस्वरूपिणि ब्राह्मि दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते॥५॥
वृष्णीनां कुलसंभूते विष्णुनाथसहोदरि।
वृष्णिरूपधरे धन्ये दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते॥६॥
सर्वज्ञे सर्वगे शर्वे सर्वेशे सर्वसाक्षिणि।
सर्वामृतजटाभारे दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते॥७॥
अष्टबाहु महासत्त्वे अष्टमी नवमि प्रिये।
अट्टहासप्रिये भद्रे दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ॥८।
दुर्गाष्टकमिदं पुण्यं भक्तितो यः पठेन्नरः।
सर्वकाममवाप्नोति दुर्गालोकं स गच्छति ॥९॥

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DEVI ATHARVASHIRSHA UPANISHAD

                        देव्यथर्वशीर्षोपनिषत्
ऊँ सर्वे वै देवा देवीमुपतस्थुः
कासि त्वं महादेवीति ॥१॥
साब्रवीत्- अहं ब्रह्मस्वरूपिणी।
मत्तः प्रकृतिपुरुषात्मकं जगत्। शून्यं चाशून्यम् च ॥२॥
अहमानन्दानानन्दौ। अहं विज्ञानाविज्ञाने।
अहं ब्रह्माब्रह्मणी वेदितव्ये। अहं पञ्चभूतान्यपञ्चभूतानि । अहमखिलं जगत्॥३॥
वेदोऽहमवेदोऽहम्। विद्याहमविद्याहम्।
अजाहमनजाहम् । अधश्चोर्ध्वं च तिर्यक्चाहम्॥४॥
अहं  रुद्रेभिर्वसुभिश्चरामि।
अहमादित्यैरुत विश्वदेवैः।
अहं मित्रावरुणावुभौ बिभर्मि। अहमिन्द्राग्नी अहमश्विनावुभौ॥५॥
अहं सोमं त्वष्टारं पूषणं भगं दधामि। अहं विष्णुमुरुक्रमं
ब्रह्माणमुत प्रजापतिं  दधामि॥६॥
अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये उ यजमानाय सुन्वते
। अहं राष्ट्री सङ्गमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम्। अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन्मम
योनिरप्स्वन्तः समुद्रे । य एवम् वेद। स देवीं सम्पदमाप्नोति ॥७॥
ते देवा अब्रुवन्-
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्॥८॥
तामग्निवर्णां तपसा ज्वलन्तीं वैरोचनीं कर्मफलेषु जुष्टाम्।
दुर्गां देवीं शरणं प्रपद्यामहेऽसुरान्नाशयित्र्यै ते नमः
॥९॥
देवीं वाचमजनयन्त देवास्तां विश्वरूपाः पशवो वदन्ति
सा नो मन्द्रेषमूर्जं दुहाना धेनुर्वागस्मानुप सुष्टुतैतु॥१०॥
कालरात्रीं ब्रह्मस्तुतां वैष्णवीं स्कन्दमातरम्।
सरस्वतीमदितिं दक्षदुहितरं नमामः पावनां शिवाम् ॥११॥
महालक्ष्म्यै च विद्महे सर्वशक्त्यै च धीमहि।
तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥१२॥
अदितिर्ह्यजनिष्ट दक्ष या दुहिता तव
तां देवा अन्वजायन्त भद्रा अमृतबन्धवः ॥१३॥
कामो योनिः कमला वज्रपाणिर्गुहा हसा मातरिश्वाभ्रमिन्द्रः।
पुनर्गुहा सकला मायया च पुरूच्यैषा विश्वमातादिविद्योम्॥१४॥
एषात्मशक्तिः। एषा विश्वमोहिनी। पाशाङ्कुशधनुर्बाणधरा। एषा
श्रीमहाविद्या।
य एवं वेद स शोकं तरति॥१५॥
नमस्ते अस्तु भगवति मातरस्मान् पाहि सर्वतः ॥१६॥
सैषाष्टौ वसवः। सैषैकादशरुद्राः। सैषा द्वादशादित्याः। सैषा
विश्वेदेवाः सोमपा असोमपाश्च। सैषा यातुधाना असुरा रक्षांसि पिशाचा यक्षाः सिद्धाः
। सैषा सत्त्वरजस्तमांसि। सैषा ब्रह्मविष्णुरुद्ररूपिणी। सैषा प्रजापतीन्द्रमनवः ।
सैषा ग्रहनक्षत्रज्योतींषि। कला काष्ठादिकालरूपिणी। तामहं
प्रणौमि नित्यम् ।
पापहारिणीं देवीं भुक्तिमुक्तिप्रदायिनीम्।
अनन्तां विजयां शुद्धां शरण्यां शिवदां शिवाम्॥१७॥
वियदीकारसंयुक्तं वीतिहोत्रसमन्वितम्।
अर्धेन्दुलसितं देव्या बीजं सर्वार्थसाधकम् ॥१८॥
एवमेकाक्षरं ब्रह्म यतयः शुद्धचेतसः
ध्यायन्ति परमानन्दमया ज्ञानाम्बुराशयः ॥१९॥
वाङ्माया ब्रह्मसूस्तस्मात् षष्ठं वक्त्रसमन्वितम्
सुर्योऽवामश्रोत्रबिन्दुसंयुक्तष्टात्तृतीयकः ।
नारायणेन संमिश्रो वायुश्चाधरयुक् ततः
विच्चे नवार्णकोऽर्णः स्यान्महदानन्ददायकः ॥२०॥
हृत्पुण्डरीकमध्यस्थां प्रातः सूर्यसमप्रभां
पाशाङ्कुशधरां सौम्यां वरदाभयहस्तकाम् ।
त्रिनेत्रां रक्तवसनां भक्तकामदुघां भजे ॥२१॥
नमामि त्वां महादेवीं महाभयविनाशिनीम्।
महादुर्गप्रशमनीं महाकारुण्यरूपिणीम् ॥२२॥
यस्याः स्वरूपं ब्रह्मादयो न जानन्ति तस्मादुच्यते अज्ञेया।
यस्या अन्तो न लभ्यते तस्मादुच्यते अनन्ता। यस्या लक्ष्यं नोपलक्ष्यते तस्मादुच्यते
अलक्ष्या ।
यस्या जननं नोपलभ्यते तस्मादुच्यते अजा। एकैव सर्वत्र वर्तते
तस्मादुच्यते एका। एकैव विश्वरूपिणी तस्मादुच्यते नैका।अत एवोच्यते अज्ञेयानन्तालक्ष्याजैका
नैकेति ॥२३॥
मन्त्राणां मातृका देवी शब्दानां ज्ञानरूपिणी।
ज्ञानानां चिन्मयातीता शून्यानां शून्यसाक्षिणी।
यस्याः परतरं नास्ति सैषा दुर्गा प्रकीर्तिता ॥२४॥
तां दुर्गां दुर्गमां देवीं दुराचारविघातिनीम्।
नमामि भवभीतोऽहं संसारार्णवतारिणीम् ॥२५॥
इदमथर्वशीर्षं योऽधीते स पञ्चाथर्वशीर्षजपफलमाप्नोति। इदमथर्वशीर्षमज्ञात्वा
योऽर्चां स्थापयति शतलक्षं प्रजप्त्वाऽपि सोऽर्चासिद्धिं न विन्दति। शतमष्टोत्तरं चास्य
पुरश्चर्याविधिः स्मृतः ।
दशवारं पठेद्यस्तु सद्यः पापैः प्रमुच्यते।
महादुर्गाणि तरति महादेव्याः प्रसादतः ॥२६॥
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।प्रातरधीयानो रात्रिकृतं
पापं नाशयति।
सायं प्रातः प्रयुञ्जानो अपापो भवति।निशीथे तुरीयसन्ध्यायां
जप्त्वा वाक्सिद्धिर्भवति। नूतनायां प्रतिमायां जप्त्वा देवतासान्निध्यं भवति। प्राणप्रतिष्ठायां
जप्त्वा प्राणानां प्रतिष्ठा भवति। भौमाश्विन्यां महादेवीसन्निधौ जप्त्वा महामृत्युं
तरति। स महामृत्युं तरति य एवं वेद। इत्युपनिषत्॥२७॥