BHAGYASAMRUDDHI NATARAJA DASAKAM

भाग्यसमृद्धि नटराजदशकम्
कनकसभागत काञ्चनविग्रह कामविनिग्रह कान्ततनो
कलिकलिताखिलपापमलापह कृत्तिसमावृतदेह विभो ।
कुवलयसन्निभ रत्नविनिर्मितदिव्यकिरीट शुभाष्टतनो
जय जय हे नटराजपते शिव भाग्यसमृद्धिमुपार्जय मे ॥१॥
करकलितामलशूलभयंकर कालनिरासकपाद विभो
पदकमलागतभक्तजनावनबद्धसुकङ्कण देव विभो ।
शिवनिलयागतभूतिविभूषित दीक्षितपूजित पूज्यतनो
जय जय हे नटराजपते शिव भाग्यसमृद्धिमुपार्जय मे ॥२॥
हर हर शंकर भक्तहृदम्बरवास चिदंबरनाथ विभो
दुरितनिरन्तर दुष्टभयंकर दर्शनशंकर दिव्यतनो।
दशशतकन्धर शेषहृदन्तर संगररक्षित पार्थगुरो
जय जय हे नटराजपते शिव भाग्यसमृद्धिमुपार्जय मे ॥३॥
शिव शिव शंकर सांब पुरन्दरपूजित सुन्दर मन्त्रनिधे
मुरहरसन्निधिमङ्गलदर्शन मन्त्ररहस्यचिदात्मतनो ।
पुरहरसंहर पापमपाकुरु भीतिमरातिकृतामखिलां
जय जय हे नटराजपते शिव भाग्यसमृद्धिमुपार्जय मे ॥४॥
भुजगविभूषण भूतिविलेपन फालविलोचन लोकतनो
वृषभसुवाहन गांगपयोधर सुन्दरनर्तन सोमतनो ।
सुतधनदायक सौख्यविधायक साधुदयाकर सत्त्वतते
जय जय हे नटराजपते शिव भाग्यसमृद्धिमुपार्जय मे ॥५॥
सकलहृदन्तर चन्द्रकलाधर मन्त्रपराकृतभूतपते
चरणसमर्चन दिव्यगृहागत देववरार्पित भाग्यतनो।
विधिहरिनारदयक्षसुरासुर भूतकृतस्तुति तुष्टिमते
जय जय हे नटराजपते शिव भाग्यसमृद्धिमुपार्जय मे ॥६॥
गिरितनयार्पित चन्दनचंपक कुंकुमपंकजगन्धतनो
धिमिधिमिधिन्धिमि वादननूपुर पादतलोदित नृत्तगुरो।
रविकिरणास्तमयागत दैवत दृष्टसुनर्त्तन दक्षतनो
जय जय हे नटराजपते शिव भाग्यसमृद्धिमुपार्जय मे ॥७॥
हिमगिरिजाकरसंग्रहणोदित मोदसुपूर्णसुवर्णतनो
गुहगणनायकगीतगुणार्णव गोपुरसूचित विश्वतनो।
गुणगणभूषण गोपतिलोचन गोपकुलाधिप मित्रमणे
जय जय हे नटराजपते शिव भाग्यसमृद्धिमुपार्जय मे ॥८॥
डमरुकधारिणमिन्दुकलाधरमिन्द्रपदप्रदमग्निकरं
गुहजननीयुतमातमृगोत्तममर्थिजनाखिलरोगहरम्।
भज भज मानसविस्मृतिकारकरोगतनूपरिदत्तपदं
जय जय हे नटराजपते शिव भाग्यसमृद्धिमुपार्जय मे ॥९॥
नतजनशंकर पिङ्गजटाधर कण्ठलसद्गर गौरतनो
वरद पतञ्जलिसत्कृतिसन्नुत मृगचरणार्पितपुष्पतते।
डमरुकवादन बोधितसर्वकलाखिल वेदरहस्यतनो
जय जय हे नटराजपते शिव भाग्यसमृद्धिमुपार्जय मे ॥१०॥
शिवदमनन्तपदान्वितरामसुदीक्षित सत्कवि पद्यमिदं।
नटनपतेरतितुष्टिकरं बहुभाग्यदमीप्सितसिद्धिकरम्
पठति शृणोति च भक्तियुतो यदि भाग्यसमृद्धिमथो लभते
जय जय हे नटराजपते शिव भाग्यसमृद्धिमुपार्जय मे ॥११॥


Sri P R Ramamurthy Ji was the author of this website. When he started this website in 2009, he was in his eighties. He was able to publish such a great number of posts in limited time of 4 years. We appreciate his enthusiasm for Sanskrit Literature. Authors story in his own words : http://ramamurthypr1931.blogspot.com/

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