THOUSAND NAMES OF DURGA – DURGA SAHASRANAMA

श्री दुर्गासहस्रनामस्तोत्रम्
ओं शिवाऽथोमा रमा
शक्तिरनन्ता निष्कलाऽमला।
शान्ता महेश्वरी
नित्या शाश्वता परमा क्षमा॥१॥
अचिन्त्या केवलाऽनन्ता
शिवात्मा परमात्मिका।
अनादिरव्यया शुद्धा
सर्वज्ञा सर्वगाऽचला॥२॥
एकानेकविभागस्था
मायातीता सुनिर्मला।
महामहेश्वरी सत्या
महादेवी निरंजना॥३॥
काष्ठा सर्वान्तरस्थाऽपि
चिच्छक्तिश्चात्रिलालिता।
सर्वा सर्वात्मिका
विश्वा ज्योतिरूपाऽक्षराऽमृता॥४॥
शान्ता प्रतिष्ठा
सर्वेशा निवृत्तिरमृतप्रदा।
व्योममूर्तिर्व्योमसंस्था
व्योमधाराऽच्युताऽतुला॥५॥
अनादिनिधनाऽमोघा
कारणात्मा कलाकुला।
ऋतुप्रथमजाऽनाभिरमृतात्मसमाश्रया॥६॥
प्राणेश्वरप्रिया
नम्या महामहिषघातिनी।
प्राणेश्वरी प्राणरूपा
प्रधानपुरुषेश्वरी॥७॥
सर्वशक्तिकलाऽकामा
महिषेष्टविनाशिनी।
सर्वकार्यनियन्त्री
च सर्वभूतेश्वरेश्वरी॥८॥
अङ्गदादिधरा चैव
तथा मुकुटधारिणी।
सनातनी महानन्दाऽऽकाशयोनिस्तथोच्यते॥९॥
चित्प्रकाशस्वरूपा
च महायोगीश्वरेश्वरी।
महामाया सुदुष्पारा
मूलप्रकृतिरीशिका॥१०॥
संसारयोनिः सकला
सर्वशक्तिसमुद्भवा।
संसारपारा दुर्वारा
दुर्निरीक्षा दुरासदा॥११॥
प्राणशक्तिश्च
सेव्याच योगिनी परमाकला।
महाविभूतिर्दुर्दर्शी
मूलप्रकृतिसम्भवा॥१२॥
अनाद्यनन्तविभवा
परार्था पुरुषारणिः।
सर्वस्थित्यन्तकृच्छैव
सुदुर्वाच्या दुरत्यया॥१३॥
शब्दगम्या शब्दमाया
शब्दाख्याऽऽनन्दविग्रहा।
प्रधानपुरुषातीता
प्रधानपुरुषात्मिका॥१४॥
पुराणी चिन्मया
पुंसामिष्टदा पुष्टिरूपिणी।
पूतान्तरस्था कूटस्था
महापुरुषसंज्ञिता॥१५॥
जन्ममृत्युजरातीता
सर्वशक्तिस्वरूपिणी।
वांछाप्रदाऽनवच्छिन्ना
प्रधानानुप्रवेशिनी॥१६॥
क्षेत्रज्ञाऽचिन्त्यशक्तिस्तु
प्रोच्यतेऽव्यक्तलक्षणा।
मलापवर्जिताऽनादिमाया
त्रितयतत्विका॥१७॥
प्रीतिश्च प्रकृतिश्चैव
गुहावासा तथोच्यते।
महामाया नवोत्पन्ना
तामसी च ध्रुवा तथा॥१८॥
व्यक्ताऽव्यक्तात्मिका
कृष्णा रक्ता शुक्ला ह्यकारणा।
प्रोच्यते कार्यजननी
नित्यप्रसवधर्मिणी॥१९॥
सर्गप्रलयमुक्ता
च सृष्टिस्थित्यन्तधर्मिणी।
ब्रह्मगर्भा चतुर्विंशत्स्वरूपा
पद्मवासिनी॥२०॥
अच्युताह्लादिका
विद्युत्ब्रह्मयोनिर्महालका।
महालक्ष्मीः समुद्भावभावितात्मा
महेश्वरी॥२१॥
महाविमानमध्यस्था
महानिद्रा सकौतुका।
सर्वार्थधारिणी
सूक्ष्माह्यविद्धा परमार्थदा॥२२॥
अनन्तरूपाऽनन्तार्था
तथा पुरुषमोहिनी।
अनेकानेकहस्ता
च कालत्रयविवर्जिता॥२३॥
ब्रह्मजन्मा हरप्रीता
मतिर्ब्रह्मशिवात्मिका।
ब्रह्मेशविष्णुसंपूज्या
ब्रह्माख्या ब्रह्मसंज्ञिता॥२४॥
व्यक्ता प्रथमजा
ब्राह्मी महारात्रीः प्रकीर्तिता।
ज्ञानस्वरूपा वैराग्यरूपा
ह्यैश्वर्यरूपिणी॥२५॥
धर्मात्मिका ब्रह्ममूर्तिः
प्रतिश्रुतपुमर्थिका।
अपांयोनिः स्वयंभूता
मानसी तत्वसम्भवा॥२६॥
ईश्वरस्यप्रिया
प्रोक्ता शंकरार्धशरीरिणी।
भवानी चैव रुद्राणी
महालक्ष्मीस्तथाम्बिका॥२७॥
महेश्वरसमुत्पन्ना
भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी।
सर्वेश्वरी सर्ववन्द्या
नित्यमुक्ता सुमानसा॥२८॥
महेन्द्रोपेन्द्रनमिता
शांकरीशानुवर्तिनी।
ईश्वरार्धासनगता
माहेश्वरपतिव्रता॥२९॥
संसारशोषिणी चैव
पार्वती हिमवत्सुता।
परमानन्ददात्री
च गुणाग्र्‌या योगदा तथा॥३०॥
ज्ञामूर्तिश्च
सावित्री लक्ष्मीः श्रीः कमला तथा।
अनन्तगुणगम्भीरा
ह्युरोनीलमणिप्रभा॥३१॥
सरोजनिलया गङ्गा
योगिध्येयाऽसुरार्दिनी।
सरस्वती सर्वविद्या
जगज्ज्येष्ठा सुमङ्गला॥३२॥
वाग्देवी वरदा
वर्या कीतिः सर्वार्थसाधिका।
वागीश्वरी ब्रह्मविद्या
महाविद्या सुशोभना॥३३॥
ग्राह्यविद्या
वेदविद्या धर्मविद्याऽऽत्मभाविता।
स्वाहा विश्वम्भरा
सिद्धिः साध्या मेधा धृतिः कृतिः॥३४॥
सुनीतिः संकृतिश्चैव
कीर्तिता नरवाहिनी।
पूजाविभाविनी सौम्या
भोग्यभाक् भोगदायिनी॥३५॥
शोभावती शांकरी
च लोला मालाविभूषिता।
परमेष्ठिप्रिया
चैव त्रिलोकीसुन्दरी तथा॥३६॥
नन्दा संध्या कामधात्री
महादेवी सुसात्विका।
महामहिषदर्पघ्नी
पद्ममालाऽघहारिणी॥३७॥
विचित्रमुकुटा
रामा कामदाता प्रकीर्तिता।
पीताम्बरधरा दिव्यविभूषण
विभूषिता॥३८॥
दिव्याख्या सोमवदना
जगत्संसृष्टिवर्जिता।
निर्यन्त्रा यन्त्रवाहस्था
नन्दिनी रुद्रकालिका॥३९॥
आदित्यवर्णा कौमारी
मयूरवरवाहिनी।
पद्मासनगता गौरी
महाकाली सुरार्चिता॥४०॥
अदितिर्नियता रौद्री
पद्मगर्भा विवाहना।
विरूपाक्षा केकिवाहा
गुहापुरनिवासिनी॥४१॥
महाफलाऽनवद्याङ्गी
कामरूपा सरिद्वरा।
भास्वद्रूपा मुक्तिदात्री
प्रणतक्लेशभञ्जना॥४२॥
काशिकी गोमिनी
रात्रिस्त्रिदशारिविनाशिनी।
बहुरूपा सुरूपा
च विरूपा रूपवर्जिता॥४३॥
भक्तार्तिशमना
भव्या भवभावविनाशिनी।
सर्वज्ञानपरीताङ्गी
सर्वासुरविमर्दिका॥४४॥
पिकस्वनी सामगीता
भवाङ्कनिलया प्रिया।
दीक्षा विद्याधरी
दीप्ता महेन्द्रहितपातिनी॥४५॥
सर्वदेवमया दक्षा
समुन्द्रान्तरवासिनी।
अकलङ्का निराधारा
नित्यसिद्धा निरामया॥४६॥
कामधेनुर्बृहद्गर्भा
धीमती मौननाशिनी।
निस्सङ्कल्पा निरातन्का
विनया विनयप्रदा॥४७॥
ज्वालामाला सहस्राढ्या
देवदेवी मनोमया।
सुभगा सुविशुद्धा
मा वसुदेवसमुद्भवा॥४८॥
महेन्द्रोपेन्द्रभगिनी
भक्तिगम्या परावरा।
ज्ञानज्ञेया परातीता
वेदान्तविषया मती॥४९॥
दक्षिणा दाहिका
दह्या सर्वभूतहृदिस्थिता।
योगमायाविभागज्ञा
महामोहा गरीयसी॥५०॥
संध्या सर्वसमुद्भूता
ब्रह्मवृक्षाश्रयाऽदितिः।
बीजाङ्कुरसमुद्भूता
महाशक्तिर्महामतिः॥५१॥
ख्यातिः प्रज्ञावती
संज्ञा महाभोगीन्द्रशायिनी।
ह्रींकृतिः शंकरी
शान्तिर्गन्धर्वगणसेविता॥५२॥
वैश्वानरी महाशूला
देवसेना भवप्रिया।
महारात्री परानन्दा
शची दुःस्वप्ननाशिनी॥५३॥
ईड्या जया जगद्धात्री
दुर्विज्ञेया सुरूपिणी।
गुहाम्बिका गणोत्पन्ना
महापीठा मरुत्सुता॥५४॥
हव्यवाहा भवानन्दा
जगद्योनिः प्रकीर्तिता।
जगन्माता जगन्मृत्युर्जरातीता
च बुद्धिदा॥५५॥
सिद्धिदात्री रत्नगर्भा
रत्नगर्भाश्रया परा।
दैत्यहन्त्री स्वेष्टदात्री
मंगलैकसुविग्रहा॥५६॥
पुरुषान्तर्गता
चैव समाधिस्था तपस्विनी।
दिविस्थिता त्रिणेत्रा
च सर्वेन्द्रियमना धृतिः॥५७॥
सर्वभूतहृदिस्था
च तथा संसारतारिणी।
वेद्या ब्रह्मविवेद्या
च महालीला प्रकीर्तिता॥५८॥
ब्राह्मणी बृहती
ब्राह्मी ब्रह्मभूताऽघहारिणी।
हिरण्मयी महादात्री
संसारपरिवर्तिका॥५९॥
सुमालिनी सुरूपा
च भास्विनी धारिणी तथा।
उन्मूलिनी सर्वसभा
सर्वप्रत्ययसाक्षिणी॥६०॥
  
सुसौम्या चन्द्रवदना
ताण्डवासक्तमानसा।
सत्वशुद्धिकरी
शुद्धा मलत्रयविनाशिनी॥६१॥
जगत्रयी जगन्मूर्तिस्त्रिमूर्तिरमृताश्रया।
विमानस्था विशोका
च शोकनाशिन्यनाहता॥६२॥
हेमकुण्डलिनी काली
पद्मवासा सनातनी।
सदाकीर्तिः सर्वभूताशया
देवी सतांप्रिया॥६३॥
ब्रह्ममूर्तिकला
चैव कृत्तिका कंजमालिनी।
व्योमकेशा क्रियाशक्तिरिच्छाशक्तिः
परागतिः॥६४॥
क्षोभिका खण्डिकाऽभेद्या
भेदाभेदविवर्जिता।
अच्छिन्ना च्छिन्नसंस्थाना
वशिनी वंशधारिणी।६५॥
गुह्यशक्तिर्गुह्यतत्वा
सर्वदा सर्वतोमुखी।
भगिनी च निराधारा
निराहारा प्रकीर्तिता॥६६॥
निरङ्कुशपदोद्भूता
चक्रहस्ता विशोधिका।
स्रग्विणी पद्मसम्भेदकारिणी
परिकीर्तिता॥६७॥
परावरविधानज्ञा
महापुरुषपूर्वजा
परावरज्ञा विद्या
च विद्युज्जिह्वा जिताश्रया॥६८॥
विद्यामयी सहजा
साक्षी सहस्रवदनात्मजा।
सहस्ररश्मिः सत्वस्था
महेश्वरपदाश्रया॥६९॥
ज्वालिनी सन्मया
व्याप्ता चिन्मया पद्मभेदिका।
महाश्रया महामन्त्रा
महादेवमनोरमा॥७०॥
व्योमलक्ष्मीः
सिंहरथा चेकितानाऽमितप्रभा।
विश्वेश्वरी भगवती
सकला कालहारिणी॥७१॥
सर्ववेद्या सर्वभद्रा
गुह्या गूढा गुहारणी।
प्रलया योगधात्री
च गंगा विश्वेश्वरी तथा॥७२॥
कामदा कनका कान्ता
कंजगर्भप्रभा तथा।
पुण्यदा कालकेशा
च भोक्त्री पुष्करणी तथा॥७३॥
सुरेश्वरी भूतिदात्री
भूतिभूषा प्रकीर्तिता।
पंचब्रह्मसमुत्पन्ना
परमार्थाऽर्थविग्रहा॥७४॥
वर्णोदया भानुमूर्तिर्वाग्विज्ञेया
मनोजवा।
मनोहरा महोरस्का
तामसी वेदरूपिणी॥७५॥
वेदशक्तिर्वेदमाता
वेदविद्याप्रकाशिनी।
योगेश्वरेश्वरी
माया महाशक्तिर्महामयी॥७६॥
विश्वान्तःस्था
वियन्मूर्तिः भार्गवी सुरसुन्दरी।
सुरभिर्नन्दिनी
विद्या नन्दगोपतनूद्भवा॥७७॥
भारती परमानन्दा
परावरविभेदिका।
सर्वप्रहरणोपेता
काम्या कामेश्वरेश्वरी॥७८॥
अनन्तानन्तविभवा
हृल्लेखा कनकप्रभा।
कूष्माण्डा धनरत्नाढ्या
सुगन्धा गन्धदायि॥७९॥
त्रिविक्रमपदोद्भूता
चतुरास्या शिवोदया।
सुदुर्लभा धनाध्यक्षा
धन्या पिङ्गललोचना॥८०॥
शान्ता प्रभा स्वरूपा
च पंकजायतलोचना।
इन्द्राक्षी हृदयान्तस्था
शिवा माता च सत्क्रिया॥८१॥
गिरिजा च सुगूढा
च नित्यपुष्टा निरन्तरा।
दुर्गा कात्यायनी
चण्डी चन्द्रिका कान्तविग्रहा॥८२॥
हिरण्यवर्णा जगती
जगद्यन्त्रप्रवर्तिका।
मन्दराद्रिनिवासा
च शारदा स्वर्णमालिनी॥८३॥
रत्नमाला रत्नगर्भा
व्युष्टिर्विश्वप्रमाथिनी।
पद्मानन्दा पद्मनिभा
नित्यपुष्टा कृतोद्भवा॥८४॥
नारायणी दुष्टशिक्षा
सूर्यमाता वृषप्रिया।
महेन्द्रभगिनी
सत्या सत्यभाषा सुकोमला॥८५॥
वामा च पंचतपसां
वरदात्री प्रकीर्तिता।
वाच्यवर्णेश्वरी
विद्या दुर्जया दुरतिक्रमा॥८६॥
कालरात्रिमहावेगा
वीरभद्रप्रिया हिता।
भद्रकाली जगन्माता
भक्तानां भद्रदायिनी॥८७॥
कराला पिङ्गलाकारा
कामभेत्री महामनाः।
यशस्विनी यशोदा
च षडध्वपरिवर्तिका॥८८॥
शंखिनी पद्मिनी
संख्या सांख्ययोगप्रवर्तिका।
चैत्रादिर्वत्सरारूढा
जगत्संपूरणीन्द्रजा॥८९॥
शुम्भघ्नी खेचराराध्या
कम्बुग्रीवा बलीडिता।
खगारूढा महैश्वर्या
सुपद्मनिलया तथा॥९०॥
विरक्ता गरुडस्था
च जगतीहृद्गुहाश्रया।
शुम्भादिमथना भक्तहृद्गह्वरनिवासिनी॥९१॥
जगत् त्रयारणी
सिद्धसंकल्पा कामदा तथा।
सर्वविज्ञानदात्री
चानल्पकल्मषहारिणी॥९२॥
सकलोपनिषद्गम्या
दुष्टदुष्प्रेक्ष्यसत्तनुः।
सद्वृत्ता लोकसंव्याप्ता
तुष्टिः पुष्टिः क्रियावती॥९३॥
विश्वामरेश्वरी
चैव भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी।
शिवधृता लोहिताक्षी
सर्वमालाविभूषणा॥९४॥
निरानन्दा त्रिशूलासिधनुर्बाणादिधारिणी।
अशेषध्येयमूर्तिश्च
देवतानां च देवता॥९५॥
वरांबिका गिरेः
पुत्री निशुंभविनिपातिनी।
सुवर्णा स्वर्णलसिताऽनंतवर्णा
सदाधृता॥९६॥
शांकरी शांतहृदया
अहोरात्रविधायिका।
विश्वगोप्त्री
गूढरूपा गुणपूर्णा च गार्ग्यजा॥९७॥
गौरी शाकंभरी सत्यसन्धा
संध्यात्रयीदृता।
सर्वपापविनिर्मुक्ता
सर्वबन्धविवर्जिता॥९८॥
सांख्ययोगसमाख्याता
अप्रमेया मुनीडिता।
विशुद्धसुकुलोद्भूता
बिन्दुनादसमादृता॥९९॥
शंभुवामांकगा चैव
शशितुल्यनिभानना।
वनमालाविराजंती
अनंतशयनादृता॥१००॥
नरनारायणोद्भूता
नरसिंही प्रकीर्तिता।
दैत्यप्रमाथिनी
शंखचक्रपद्मगदाधरा॥१०१॥
संकर्षणसमुत्पन्ना
अंबिका सज्जनाश्रया।
सुव्रता सुन्दरी
चैव धर्मकामार्थदायिनी॥१०२॥
मोक्षदा भक्तनिलया
पुराणपुरुषादृता।
महाविभूतिदाऽऽराध्या
सरोजनिलयाऽसमा॥१०३॥
अष्टादशाभुजाऽनादि
नीलोत्पलदलाक्षिणी।
सर्वशक्तिसमारूढा
धर्माधर्मविवर्जिता॥१०४॥
वैराग्यज्ञाननिरता
निरालोका निरिन्द्रिया।
विचित्रगहनाधारा
शाश्वतस्थानवासिनी॥१०५॥
ज्ञानेश्वरी पीतचेला
वेदवेदान्तपारगा।
मनस्विनी मन्युमाता
महामन्युसमुद्भवा॥१०६॥
अमन्युरमृतास्वादा
पुरन्दरपरिष्टुता।
अशोच्या भिन्नविषया
हिरण्यरजतप्रिया॥१०७॥
हिरण्यजननी भीमा
हेमाभरणभूषिता।
विभ्राजमाना दुर्ज्ञेया
ज्योतिष्टोमफलप्रदा॥१०८॥
महानिद्रा समुत्पत्तिरनिद्रा
सत्यदेवता।
दीर्घा ककुद्मिनी
पिङ्गजटाधारा मनोज्ञधीः॥१०९॥
महाश्रया रमोत्पन्ना
तमःपारे प्रतिष्ठिता।
त्रितत्वमाता त्रिविधा
सुसूक्ष्मा पद्मसंश्रया॥११०॥
शान्त्यतीतकलाऽतीतविकारा
श्वेतचेलिका।
चित्रमाया शिवज्ञानस्वरूपा
दैत्यमाथिनी॥१११॥
काश्यपी कालसर्पाभवेणिका
शास्त्रयोनिका।   
क्रियामूर्तिश्चतुर्वर्गदर्शिनी
संप्रकीर्तिता॥११२॥
नारायणी नरोत्पन्ना
कौमुदी कान्तिधारणी।
कौशिकी ललिता लीला
परावरविभाविनी॥११३॥
वरेण्याऽद्भुतमाहात्म्या
वडवा वामलोचना।
सुभद्रा चेतनाराध्या
शान्तिदा शन्तिवर्धिनी॥११४॥
जयादिशक्तिजननी
शक्तिचक्रप्रवर्तिका।
त्रिशक्तिजननी
जन्या षट्सूत्रपरिवर्णिता॥११५॥
सुधौतकर्मणाराध्या
युगान्तदहनात्मिका।
सङ्कर्षिणी जगद्धात्री
कामयोनिः किरीटिनी॥११६॥
एन्द्री त्रैलोक्यनमिता
वैष्णवी परमेश्वरी।
प्रद्युम्नजननी
बिंबसमोष्ठी पद्मलोचना॥११७॥
मदोत्कटा हंसगतिः
प्रचण्डा चण्डविक्रमा।
वृषाधीशा परात्मा
च विन्ध्यपर्वतवासिनी॥११८॥
हिमवन्मेरुनिलया
कैलासपुरवासिनी।
चाणूरहन्त्री नीतिज्ञा
कामरूपा त्रयीतनुः॥११९॥
व्रतस्नाता धर्मशीला
सिंहासननिवासिनी।
वीरभद्रादृता वीरा
महाकालसमुद्भवा॥१२०॥
विद्याधरार्चिता सिद्धसाद्ध्याराधितपादुका।
श्रद्धात्मिका पावनी च मोहिनी अचलात्मिका
॥१२१॥
महाद्भुता वारिजाक्षी सिंहवाहनगामिनी।
मनीषिणी सुधावाणी वीणावादनतत्परा॥१२२॥
श्वेतवाहनिषेव्या च लसन्मतिररुन्धती
हिरण्याक्षी तथा चैव महानन्दप्रदायिनी
॥१२३॥
वसुप्रभा सुमाल्याप्तकन्धरा पंकजानना
परावरा वरारोहा सहस्रनयनार्चिता
॥१२४॥
श्रीरूपा श्रीमती श्रेष्ठा शिवनाम्नी
शिवप्रिया।
श्रीपदा श्रितकल्याणा श्रीधरार्धशरीरिणी
॥१२५॥
श्रीकलाऽनन्तदृष्टिश्च अक्षुद्राऽरातिसूदनी।
रक्तबीजनिहन्त्री च दैत्यसंघविमर्दिनी
॥१२६॥
सिंहारूढा सिंहिकास्या दैत्यशोणितपायिनी।
सुकीर्तिर्महिता छिन्नसंशया रसवेदिनी
॥१२७॥
गुणाभिरामा नागारिवाहना निर्जरार्चिता
नित्योदिता स्वयंज्योतिः स्वर्णकाया
प्रकीर्तिता॥१२८॥
वज्रदण्डाङ्किता चैव तथाऽमृतसंजीविनी।
वज्रच्छन्ना देवदेवी वरवज्रस्वविग्रहा॥१२९॥
मङ्गल्या मङ्गलात्मा च मालिनी माल्यधारिणी।
गंधर्वी तरुणी चान्द्री खड्गायुधधरा
तथा॥१३०॥
सौदामिनी प्रजानन्दा  तथा प्रोक्ता  भृगूद्भवा।
एकानंगा च शास्त्रार्थकुशला धर्मचारिणी॥१३१॥
धर्मसर्वस्ववाहा च धर्माधर्मविनिश्चया।
धर्मशक्तिर्धर्ममया धार्मिकानां
शिवप्रदा ॥१३२॥
विधर्मा विश्वधर्मज्ञा धर्मार्थान्तरविग्रहा
धर्मवर्ष्मा धर्मपूर्णा धर्मपारंगतान्तरा॥१३३॥
धर्मोपदेष्ट्री धर्मात्मा धर्मगम्या
धराधरा।
कपालिनी शाकलिनी कलाकलितविग्रहा॥१३४॥
सर्वशक्तिविमुक्ता च कर्णिकारधराऽक्षरा।
कंसप्राणहरा चैव युगधर्मधरा तथा॥१३५॥
युगप्रवर्तिका प्रोक्ता त्रिसन्ध्या
ध्येयविग्रहा।
स्वर्गापवर्गदात्री च तथा प्रत्यक्षदेवता
॥१३६॥
आदित्या दिव्यगन्धा च दिवाकरनिभप्रभा।
पद्मासनगता प्रोक्ता खड्गबाणशरासना॥१३७॥
शिष्टा विशिष्टा शिष्टेष्टा शिष्टश्रेष्ठप्रपूजिता।
शतरूपा शतावर्ता वितता रासमोदिनी
॥१३८॥
सूर्येन्दुनेत्रा प्रद्युम्नजननी
सुष्ठुमायिनी।
सूर्यान्तरस्थिता चैव सुप्रतिष्ठितविग्रहा
॥१३९॥
निवृत्ता प्रोच्यते ज्ञानपारगा पर्वतात्मजा
कात्यायनी चण्डिका च चण्डी हैमवती
तथा ॥१४०॥
दाक्षायणी सती चैव भवानी सर्वमङ्गला।
धूम्रलोचनहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी
॥१४१॥
योगनिद्रा योगभद्रा समुद्रतनया तथा।
देवप्रियंकरी शुद्धा भक्तभक्तिप्रवर्धिनी
॥१४२॥
त्रिणेत्रा चन्द्रमुकुटा प्रमथार्चितपादुका
अर्जुनाभीष्टदात्री च पाण्डवप्रियकारिणी
॥१४३॥
कुमारलालनासक्ता हरबाहूपधानिका ।
विघ्नेशजननी भक्तविघ्नस्तोमप्रहारिणी
॥१४४॥
सुस्मितेन्दुमुखि नम्या जयाप्रियसखी
तथा।
अनादिनिधना प्रेष्ठा चित्रमाल्यानुलेपना
॥१४५॥
कोटिचन्द्रप्रतीकाशा कूटजालप्रमाथिनी।
कृत्या प्रहारिणी चैव मारणोच्चाटनी
तथा॥१४६॥
सुरासुरप्रवंद्याघ्रिर्मोहघ्नी ज्ञानदायिनी।
षड्वैरिनिग्रहकरी वैरिविद्राविनी
तथा ॥१४७॥
भूतसेव्या भूतदात्री भूतपीडाविमर्दिका।
नारदस्तुतचारित्रा वरदेशा वरप्रदा
॥१४८॥
वामदेवस्तुता चैव कामदा सोमशेखरा
दिक्पालसविता भव्या भामिनी भावदायिनी
।१४९॥
स्त्रीसौभाग्यप्रदात्री च भोगदा
रोगनाशिनी।
व्योमगा भूमिगा चैव मुनिपूज्यपदांबुजा

वनदुर्गा च दुर्बोधा महादुर्गा प्रकीर्तिता
॥१५०॥

Sri P R Ramamurthy Ji was the author of this website. When he started this website in 2009, he was in his eighties. He was able to publish such a great number of posts in limited time of 4 years. We appreciate his enthusiasm for Sanskrit Literature. Authors story in his own words : http://ramamurthypr1931.blogspot.com/

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