श्री गायत्री अष्टोत्तरशतनामावलिः
Chant prefixing ‘ओं’ and suffixing ‘नमः’
ओं श्री गायत्र्यै नमः
जगन्मात्रे
परब्रह्मस्वरूपिण्यै
परमार्थप्रदायै
जप्यायै
ब्रह्मतेजोविवर्धिन्यै
ब्रह्मास्त्ररूपिण्यै
भव्यायै
त्रिकालध्येयरूपिण्यै
त्रिमूर्तिरूपायै १०
सर्वज्ञायै
वेदमात्रे
मनोन्मन्यै
बालिकायै
तरुण्यै
वृद्धायै
सूर्यमण्डलवासिन्यै
मन्देहदानवध्वंसकारिण्यै
सर्वकारणायै
हंसारूढायै २०
गरुडारूढायै
वृषभारूढायै
शुभायै
षट्कुक्षिण्यै
त्रिपदायै
शुद्धायै
पञ्चशीर्षायै
त्रिलोचनायै
त्रिवेदरूपायै
त्रिविधायै ३०
त्रिवर्गफलदायिन्यै
दशहस्तायै
चन्द्रवर्णायै
विश्वामित्रवरप्रदायै
दशायुधधरायै
नित्यायै
सन्तुष्टायै
ब्रह्मपूजितायै
आदिशक्त्यै
महाविद्यायै ४०
सुषुम्नाख्यायै
सरस्वत्यै
चतुर्विंशत्यक्षराढ्यायै
सावित्र्यै
सत्यवत्सलायै
सन्ध्यायै
रात्र्यै
प्रभाताख्यायै
सांख्यायनकुलोद्भवायै
सर्वेश्वर्यै ५०
सर्वविद्यायै
सर्वमन्त्राद्यै
अव्ययायै
शुद्धवस्त्रायै
शुद्धविद्यायै
शुक्लमाल्यानुलेपनायै
सुरसिन्धुसमायै
सौम्यायै
ब्रह्मलोकनिवासिन्यै
प्रणवप्रतिपाद्यार्थायै ६०
प्रणतोद्धरणक्षमायै
जलाञ्जलिसुसन्तुष्टायै
जलगर्भायै
जलप्रियायै
स्वाहायै
स्वधायै
सुधासंस्थायै
श्रौषट्वौषट्वषट्क्रियायै
सुरभ्यै
षोडशकलायै ७०
मुनिबृन्दनिषेवितायै
यज्ञप्रियायै
यज्ञमूर्त्यै
स्रुक्स्रुवाज्यस्वरूपिण्यै
अक्षमालाधरायै
अक्षमालासंस्थायै
अक्षराकृत्यै
मधुछन्दसे
ऋषिप्रीतायै
स्वच्छन्दायै ८०
छन्दसांनिधये
अङ्गुलीपर्वसंस्थानायै
चतुर्विंशतिमुद्रिकायै
ब्रह्ममूर्त्यै
रुद्रशिखायै
सहस्रपरमाम्बिकायै
विष्णुहृदयायै
अग्निमुख्यै
शतमध्यायै
दशावरणायै ९०
सहस्रदलपद्मस्थायै
हंसरूपायै
निरञ्जनायै
चराचरस्थायै
चतुरायै
सूर्यकोटिसमप्रभायै
पञ्चवर्णमुख्यै
धात्र्यै
चन्द्रकोटिशुचिस्मितायै
महामायायै १००
विचित्राङ्ग्यै
मायाबीजनिवासिन्यै
सर्वयन्त्रात्मिकायै
सर्वतन्त्ररूपायै
जगद्धितायै
मर्यादापालिकायै
मान्यायै
महामन्त्रफलप्रदायै १०८